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________________ नियुक्तिपंचक आदि का बल जानना चाहिए। संभाव्य वीर्य में आज जो ग्रहण करने में पटु नहीं है, उसकी बुद्धि का परिकर्भ होने पर वह ग्रहण-पटु हो जाता है। इंद्रिय बल-पांच इंद्रियों का अपने-अपने विषय के ग्रहण का सामर्थ्य इंद्रिय-बल है। आध्यात्मिक जल --भावनात्मक वैतन्य जगाने वाले तत्व आध्यात्मिक वीर्य हैं। नियुक्तिकार के अनुसार आध्यात्मिक वीर्य के ९ प्रकार हैं, जो व्यक्तित्व-विकास के महत्त्वपूर्ण सूत्र हैंउद्यम वीर्य- ज्ञानोपार्जन एवं तपस्या आदि के अनुष्ठान में किया जाने वाला प्रयत्न । धृति वीर्य-संचम में स्थिरता, चित्त की उपशान्त अवस्था। धीरता वीर्य –काष्टों को सहने की शक्ति। शीडीर्य वीर्य त्याग की उत्कट भावनः, आपत्ति में अखिन्न रहना तथा विषम परिस्थिति में भी प्रसन्नता से कार्य को पूरा करना। क्षमा वीर्य—दूसरों द्वारा अपमानित होने पर भी सम रहना। गाम्भीर्य वीर्य -चामत्कारिक अनष्ठान करके भी अहंभाव नहीं लाना। उपयोग वीर्य.. पाना का व्यापार करना। योग वीर्य- मन, वचन और काया की अकुशल प्रवृत्ति का निरोध तथा कुशल योग का प्रवर्तन । तपो वीर्य--बारह प्रकार के तप से स्वयं को भावित करना तथा सतरह प्रकार के संयम में रत रहना। नियुक्तिकार ने प्रकारान्तर से भावबीर्य के तीन भेद किए हैं—१. पंडितवीर्य २. बालवीर्य ३. बाल-पंडितवीर्य । अयबा अगारवीर्य और अनगारवीर्य ये दो भेद भी किए जा सकते हैं। __ निशीथ पीठिका में पांच प्रकार के वीर्य का उल्लेख मिलता है.-१. भववीर्य २. गुणवीर्य ३. चारित्रवीर्य ४ समाधिवीर्य ५. आत्मवीर्य । भववीर्य – चारों गतियों से संबंधित विशेष सामर्थ्य भववीर्य कहलाता है, जैसे- यंत्र, असि, कुंभी, चक, कंडु, भट्टी तथा शूल आदि से भेदे जाते हुए महावेदना के उदय में भी नारकी जीवों का अस्तित्व विलीन नहीं होता। अश्वों में दौड़ने की शक्ति तथा पशुउरों में शीत, उष्ण आदि सहन करने का सहज सामर्थ्य होता है। मनुष्यों में सब प्रकार के चारित्र स्वीकार करने का सामर्थ्य होता है। देवों में पांच पर्याप्तियां पूर्ण होते ही यथेप्सित रूप विकुर्वणा करने की शक्ति होती है। वज्र-प्रहार होने पर भयंकर वेदना की उदीरणा मे भी उनका विलय नहीं होता, यह सारा भववीर्य है। गुणवीर्य – तिक्त, कटु, कषाय, मधुर आदि औषधियों में जो रोगापनयन की शक्ति होती है, वह गुणवीर्य है। नियुक्तिकार के अनुसार इसे द्रव्यवीर्य के अंतर्गत रसवीर्य और विपाकवीर्य में रखा जा सकता है। चारित्रवीर्य--सम्पूर्ण कर्मक्षय करने का सामर्थ्य तथा क्षीराव आदि लब्धि उत्पन्न करने की शक्ति। समाधिवीर्य—मन में ऐसी समाधि उत्पन्न करना, जिससे कैवल्य की उत्पति हो अथवा सर्वार्थसिद्धि १. सूनि ९७। २. निभा ४७, पृ. २६. २७ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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