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________________ निर्मुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण और अर्थ के बीच होने वाली विसंगति का ही निराकरण नहीं किया बल्कि निक्षेपों के भेद-प्रभेदों से एक शब्दकोश भी तैयार कर दिया है। नियुक्ति-साहित्य से यदि निक्षिप्त गाथाओं को निकाल दिया जाए तो पीछे आधा भाग भी नहीं बचेगा। यदि नियुक्ति-साहित्य के निक्षिप्त शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत की जाए तो एक बृहद् शोधग्रंथ प्रस्तुत किया जा सकता है। यहां हम केवल वीर्य, सम्यक् और शुद्धि—इन तीन शब्दों की निक्षेपपरक संक्षिप्त माया प्रस्तुत कर रहे हैं.... वीर्य नाम स्थापना काल भाव सचित्त अचित्त 1मश्र द्विपद चतुष्पद” अपद आहारवीर्य आवरणवीर्य प्रहरणवीर्य रसीर्य विपाकवीर्य क्षेत्रवीर्य:- जिस क्षेत्र की जो शक्ति होती है, वह क्षेत्रवीर्य कहलाती है। अथवा जिस क्षेत्र में वीर्य की व्याख्या की जाती है, वह भी क्षेत्रवीर्य है। जैसे देवकुरु आदि क्षेत्र में सभी पदार्थ उस क्षेत्र के प्रभाव से उत्तम वीर्य वाले होते हैं। अथवा दुर्ग आदि विशिष्ट क्षेत्र में वीर्य अत्यधिक उल्लसित होता है, वह क्षेत्रवीर्य है। कालवीर्य-जिस काल में जो शक्ति होती है, वह कालवीर्य है। जैसे एकान्त सुषमा--प्रथम आरा कालवीर्य है। विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न द्रव्यों की विशिष्ट शक्ति होती है। उदाहरणार्थ वैद्यक शास्त्र में कहा गया है—वर्षाकाल में लवण, शरद में जल, हेमन्त में गाय का दूध, शिशिर में आंवले का रस, बसन्त में घी और ग्रीष्म में गुड़ अमृत के समान है। इसी प्रकार हरीतकी हरड़ के भी काल के साथ विविध प्रयोग है। ग्रीष्म ऋतु में हरड़े के साथ बराबर गुड, वर्षाकाल में नमक, शरद् ऋतु में शक्कर, हेमन्त में सोंठ. शिशिर में पीपल तथा बसन्त ऋतु में मधु का सेवन करने से पुरुषों के समस्त रोग दूर हो जाते हैं। भावदीर्य--वीर्यशक्ति वाले जीव में वीर्य संबंधी अनेक लब्धियां होती हैं। भाववीर्य के मुख्यत. तीन प्रकार हैं—१. शारीरिक बल २. इंद्रिय दल ३ आध्यात्मिक बल। शारीरिक बल—इसके अंतर्गत मनोवीर्य, वाकवीर्य, कायवीर्य और आनापानवीर्य आदि का समावेश होता है। यह संभव और संभाव्य.--दो प्रकार का होता है। संभव वीर्य , जैसे—तीर्थंकर और अनुत्तरविमान के देवों का मनोद्रव्य अत्यंत पटु और शक्तिशाली होता है। वचनबल में तीर्थकरों की वाणी योजनगामिनी होती है तथा कायबल में चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव १. वीर्य की विस्तृत व्याख्या हेतु देखें—नि ९१-९७: सूचू १ पृ १६३-६५, सूटी पृ ११०-१२ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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