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________________ नियुक्तिपंचक ६२. प्रतिमाप्रतिपन्न मुनि एक क्षेत्र में एक अहोरात्र, यथालंदक मुनि पांच अहोरात्र, जिनकल्पिक मुनि एक मास, शुद्धपारिहारिक मुनि एक मास तथा स्थविरकल्पी मुनि निष्कारण भी एक मास रह सकती है। कारण होने पर न्यून वास मा अतिरिक्त भास भी रहा जा सकता है ।) ६३. स्थविरकल्पी मुनि के लिए न्यूनातिरिक्त आठ मास का विहरण काल है । इतर अर्थात् प्रतिमा प्रतिपन्न मुनि, यथालन्दक मुनि, विशुद्ध पारिहारिक मुनि तथा जिनकल्पिक मुनि ययाकल्प आठ मास तक विचरण कर नियमित चार मास तक वर्षावास करते हैं। ६४, बर्षावास की स्थापना आषाढी पूर्णिमा को कर लेनी चाहिए । उसी क्षेत्र में मृगसिर कृष्णा दशमी तक रहा जा सकता है । ६४.१ (प्रस्तुत प्रलोक में वर्षायोग्य क्षेत्र का निरूपण है। जहां बंध हो, मोषध की उपलब्धि हो-धान्य की प्रचुरता हो. राजा सुरक्षाकारी हो, पाषण्ड-अन्यतीर्थिक न्यून हों, भिक्षा की सुलभता हो, स्वाध्याय की बाधा न हो, कीचड़ न हो, वीन्द्रिय आदि प्राणियों की प्रचुर उत्पत्ति न हो, स्थंडिल भूमि की सुविधा हो, जहाँ दो-पार रहने योग्य वसति हो, गोरस की प्रचुरता हो तथा जहा के परिवार जनाकुल हों ऐसा स्थान वर्षावास के योग्य माना जाता है। ६५. जहां आषाढमासकल्प कर लिया वहां अथवा वृषभमुनि निकट में वर्षाप्रायोग्य क्षेत्र की भावना करते हैं यहां आषाढी पूर्णिमा को प्रवेश कर प्रतिपदा से पांचवें दिन-श्रावण कृष्णा पंचमी को पर्युषणाकल्प कहकर वहीं वर्षाकाल सामाचारी की स्थापना करनी चाहिए। ६६,६७. आषाढी पूर्णिमा अथवा श्रावण कृष्णा पंचमी को वर्षावास की पर्युषणा कर लेने पर भी गृहस्थ के पूछने पर मुनि बीस दिन-रात अथवा एक मास बीस दिन तक कह सकता है कि लिए अभी अनभिग्रहीत है। उसके पश्चात् पूछने पर कहे-यह क्षेत्र कार्तिक पूर्णिमा तक अभिगहीत है। ऐसा कहने के दो कारण है-कदाचित अशिव आदि अनेक कारण उत्पन्न हो जाएं अथवा बर्षा सम्यक् न होने पर लोगों में अपवाद प्रारम्भ हो जाए। इन दोषों के कारण अभिवदित वर्ष में बीस रात-दिन तथा चन्द्र वर्ष में एक मास बीस दिन-रात की सीमा रखी ६८. आषाढी पूर्णिमा तक वर्षावास योग्य क्षेत्र न मिलने पर पांच-पांच दिन के अन्तराल से गवेषणा करते-करते एक मास और बीस दिन बीतने पर अर्थात् भाद्रव शुक्ला पंचमी तक पर्युषणा कर ले-एक स्थान पर स्थित हो जाए । निकट में वर्षावास योग्य क्षेत्र है तो आषाढी पूर्णिमा को ही पर्युषणा की स्थापना करे । जहाँ आषाढ़ मासकल्प किया है और वह क्षेत्र वर्षावास-प्रायोग्य है तो वहां आषाढ शुक्ला दशमी को वर्षावास के लिए स्थित हो जाए और आषाढी पूर्णिमा को पर्युषणा फरे। ६९. जो भाद्रव शुक्ला पंधी को वर्षावास के लिए स्थित होते हैं उनके जघन्यतः सत्तर दिन का, जो भाद्रव कृष्णा दशमी को पर्युषणा करते हैं उनके अस्सी दिन का, जो श्रावणी पूर्णिमा को पर्युषणा करते हैं उनके नब्बे दिन का, जो धावण कृष्णा दशमी को पर्युषणा करते हैं, उनके एक सौ दस दिन का ज्येष्ठावग्रह होता है । यह सारा मध्यम ज्येष्ठावग्रह है। कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को वर्षावास पूर्ण हो जाने पर भी यदि मंगसिर में वर्षा हो रही हो तो उसे दस-दस दिन तीन बार
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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