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________________ ४०८ निर्मुक्तिपंचक १०. स्थान शब्द के १५ निक्षेप हैं १. नामस्थान ६. ऊठवस्थान ११. योधस्थान २. स्थापनास्थान ७. उपरतिस्थान १२. अचलस्थान ३. द्रव्यस्थान ८, वसतिस्थान १३. गणणस्थान ४.क्षेत्रस्थान ९ संयमस्थान १४. संधनास्थान ५. अद्धास्थान १०, प्रग्रहस्थान १५. भावस्थान ११. प्रथम दशा में चणित बीस असमाधिस्थान केवल निम्म-आधारमात्र हैं। इनके सदृश अग्य भी असमाधिस्थान हो सकते हैं। इस प्रसंग में तथा अन्यत्र भी ऐसा ही समझना चाहिए । दूसरी वशर : शबल १२. शबल शव के चार निक्षेप है-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। द्वथ्य शबल है-- चितकबरा बैल आदि। आचार को चितकबरा करने वाला कशील अथवा जो आषाकर्म आदि में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार का मेनन गरता है, नहूँ " व बारा १३. अथवा लघु अपराध में शबलस्क होता है। जो मुनि प्रायश्चित्त के रूप में मूल प्रायश्चित्त को प्राप्त न होकर छेदपर्यन्त प्रायश्चित्त पाता है, वह अपने चारित्र को भी शबल बना देता है । उसे शबलचारित्री कहा जाता है। १४. (अखंड घट जल से परिपूर्ण होता है।) खंडित घट के अनेक रूप हैं ० बाल-बाल जितने छिद्र वाला। • राजि-छोटी सी दरार वाला। दालि-बड़ी दरार वाला। • खंड-एक भाग खंडित । .बोड-जिसमें एक भी कोना न हो। • खुत-छिद्रों वाला । • भिन्न-बड़े छिद्रों वाला फूटा हुआ घट । इन घड़ों से पानी क्रमश: अधिक, अधिकतर झरता है अतः ये दोषपूर्ण हैं। इसी प्रकार शबल दोषों से देश-आंशिक और सर्व विराधना होती है। यहां 'कम्मासपट्ट" के दृष्टांत से भी शबल और उससे होने वाली विराधना बताई गई है। (पट्ट के कई प्रकार है-कम्मासपट्ट, वक्रदंडपट्ट, वृत्तपट्ट आदि ।) १५. 'आसायणा' के दो प्रकार है-मिथ्यापतिपत्ति तथा लाभ | लाभ आसादना के छह निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । इनमें से प्रत्येक के दो-दो भेद है-इष्ट और अनिष्ट । १. निम्मं आधारमात्र । दश्रुचू. प ६ । प्रकार चारित्र में भी छोटी बड़ी स्खलना से २. जैसी सूती वस्त्र पर छोटा या बड़ा धब्बा है। शनल दोष लगता है, जिससे आश्विक मा सर्व तो वह वस्त्र मलिन ही कहा जाता है। उसी विराधना होती है।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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