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________________ सूत्रकृतांग निर्मुक्ति भी प्रावरण स्वभाव वाला होना प्रावरणशील है। इसी प्रकार आभरणशील तथा भोजनशील होते हैं। अथवा जिस द्रव्य का जो स्वभाव है, वह द्रव्यशील है। भावशील के दो प्रकार है-ओषशील तथा आभीक्ष्यसेवनापील अर्थात अनवरतसेवनाशील । E७. ओघशील-ओष का अर्थ है सामान्य । जो सावध योग से विरत अथवा विरतअविरत है, वह ओपशीलवान है । जो अविरत है, यह अशीलवान् है। जो निरन्तर या बार-बार शील का आचरण करता है, वह आभीक्ष्ण्यसेवनाशील है। उसके दो प्रकार है-प्रशस्त तथा अप्रशस्त । प्रशस्त भावशील है-धर्म विषयक प्रवृत्ति, अनवरत अपुर्व ज्ञानार्जन करना तथा विशिष्ट तपस्या करना । अप्रशस्तभावशील है-अधर्म तथा क्रोध आदि में प्रवृत्ति करना । आदि शब्द से अवशिष्ट कषाय तथा चोरी, अभ्याख्यान, कलह आदि गहीत हैं। ८८. प्रस्तुत अध्ययन में कुशील अर्थात् परतोषिको का तथा जो कोई अविरत है, उनका प्रतिपादन है । 'सु' यह प्रभासा और शुद्ध विषय के अर्थ में निपात है, जैसे—सुराष्ट्र । 'कु' दुगुंछा तथा अशुद्ध विषय के अर्थ में निपात है, जैसे—कुराज्य । ६९. जो अप्रासुक प्रतिसेवी होते हैं, वे धृष्टता से अपने आपको शीलवादी कहते हैं। यथार्थ में जो प्रासुकसेषी होते हैं, वे शीलवादी होते हैं । जो अप्रासक का उपभोग नहीं करते. वे शीलवादी ९०. जो गौतम-गोवतिक' हैं, जो रंडदेवता'-यत्र-तत्र वर देने वाले अथवा हाथ में चक्र रखने वाले हैं, जो वारिभद्रक--सेवाल बाने वाले अथवा शौचवादी हैं, जो अग्निहोत्रवादी- अग्नि से ही स्वर्गगमन की इच्छा रखने वाले तथा जलशौचवादी' --भागवत परिव्राजक आदि हैं-ये सारे अप्रासुकभोजी होने के कारण कुशील हैं। गाथा में 'च' शब्द से स्वयूथिक पार्श्वस्थ आदि गृहीत आव्यो अध्ययन : बोयं ९१. 'वीर्य" शब्द के छह निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । तव्य वीमं तीन प्रकार का है-सचित्त, अचित्त और मिश्र । सचित्त द्रव्यवीर्य के तीन भेद हैं - १. द्विपद-आर्हत्, उक्रवर्ती, बलदेव आदि का वीर्य अथवा स्त्रीरत्न का बीयं अथवा जिस द्रव्य का जो वीर्य हो वह । १. गौनतिक मशकजातीय धर्मसम्प्रदाय के मोक्ष की स्थापना करते थे। वे बार-बार संन्यासी होते हैं । वै प्रशिक्षित लघु बैल को हाथ पैर धोने, स्नान करने में रत रहते थे । सेकर भिक्षा के लिए घर-घर घूमने वाले वे जल से बाह्य शुद्धि के साथ आंतरिक शुद्धि होते हैं। भी मानते थे। २. टीकाकार ने 'चंडदेवगा' पाठ स्वीकृत किया ४ 'वीर्य' विषयक विशेष जानकारी के लिए देखें-सूयगडो १, आठवें अध्ययन का ३. जलशोचवादी सचित्त जल के उपयोग में आमुख ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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