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________________ नियुक्तिपंचक भाष्य के साथ मिल गयीं है। आकार में यह सबसे छोटी नियुक्ति है पर संक्षिप्त शैली में आचार विषयक अनेक विषयों का वर्णन इसमें हुआ है। नियुक्ति के प्रारम्भ में दशा शब्द की विस्तृत व्याख्या की गयी नियुक्तिकार ने समाधि, स्थान, शबल, आशातना, गणी, संपदा, चित्त, उपासक, प्रतिमा आदि शब्दों की निक्षेपपरक व्याख्या की है। उपासकप्रतिमा नामक षष्ठ अध्ययन में उपासकों के भेदों का वर्णन है, साथ ही उपासक और श्रावक में क्या अंतर है, इसका तात्विक विवेचन किया गया है। नियुक्तिकार ने प्रसंगवशा अनेक प्रकार की प्रतिमाओं का भी उल्लेग्न किया है। एकलविहारप्रतिमा स्वीकार करने वाले मुनि के गुण विशिष्ट साधुत्व के पैरामीटर हैं। आठवीं पज्जासजणा दशा में पर्युषणाकल्प का व्याख्यान किया गया है। नियुक्तिकार ने साधु के विहार-कल्प, वर्षावात स्थापित करने एवं विहार न करने के कारणों का विस्तार से वर्णन किया है तथा जघन्य, नाम और उत्कृष्ट वर्षावास के विकल्प भी प्रस्तुत किए हैं। द्रव्य स्थापना में आहार, विगय, मात्रक आदि सात द्वारों की विस्तृत विवेचना की गयी है। नर्युषण का मूल अर्थ है—कषाय का उपशमन । पर्युषणाकाल में यदि मुनि को अधिकरण या कषाय का वेग आ जाए तो सांवत्सरिक उपशमन करना चाहिए। अधिकरण के प्रसंग में नियुक्तिकार ने दुरूतक, प्रद्योत एवं द्रमक के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। कषाय के अंतर्गत कोध आदि कषायों के चार-चार भेदों का उल्लेख किया है—क्रोध, मान, माया और लोभ के दोषों को बताने के लिए नियुक्तिकार ने मरुक, अत्वकारीभट्टा, पांडुरा तथा आचार्य मंगु की कथाओं का निर्देश किया है। अंत में संयम-क्षेत्र की विशेषता तथा वर्षा में भिक्षा की अपवादिक विधि का उल्लेख किया गया है। नौ, दशा की नियुक्ति में नोह के निक्षेप तथा कर्न शब्द के एकार्थकों का उल्लेख है। निर्मुक्तिकार ने महामोहनीय कर्मबंध के कारणों का वर्जन करने की प्रेरणा दी है क्योंकि इनसे अशुभ कर्म का बंध होता है, जो दु:ख का कारण बनते हैं। दसवीं निदानस्थान दशा का दूसरा नाम आजातिस्थान भी है। इसमें जाति, आजाति और प्रत्याजाति की परिभाषाओं के साथ मोक्षगमन के योग्य साधु की विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। नियुक्तिकार ने निक्षेप के माध्यम से बंध का विस्तृत वर्णन किया है तथा अंत में संतार-समुद्र से तरने के पांव उपाय बताए हैं। कहा जा सकता है कि यह नियुक्ति आचार विषयक अनेक विषयों का स्पष्टीकरण करने वाली है। नियुक्तियों की गाथा-संख्या : एक अनुचिंतन प्रस्तुत ग्रंथ में संपादित पांचों नियुक्तियों की उपलब्धि के तीन स्रोत प्राप्त होते हैं—१. नियुक्ति की हस्तलिखित प्रतियां। २ चूर्णि में प्रकाशित नियुक्ति-गाथाएं ३. टीका में प्रकाशित निर्युक्त-गाधाएं ।' दशवकालिक और उत्तराध्ययननियुक्ति की जितनी भी हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त हुई, उनमें भाष्य और नियुक्ति की गाधाएं भी साथ में लिखी हुई थी अत: उनके आधार पर गाथाओं का सही निर्णय करना संभव नहीं था। चूर्णि और टीका की गाथा-संख्या में भी पर्याप्त अंतर है। दशवकालिक की प्रकाशित १ दशाश्रुतरकंध की टीका अभी प्रकाशित नहीं हुई है।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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