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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण का में स्वीकृत करते थे। नामकरण स्थानांग गूत्र में दशश्रुतरमध का दूसरा नाम जायर दस भी मिलता है। आयादा और दशा तस्कंध—ये दोनों ही नाम ग्रंथ की विषय-वस्तु को सार्थक करते हैं। दश श्रुतों. अध्ययनों का स्कंध अर्थात् समूह को दशश्रुतस्कंध कहा गया है। जिसमें दश प्रकार के आचार का वर्णन के. बह आयारदशा है। यहां दशा शब्द अवस्था का वाम नहीं अपितु संख्या का होता है. ऐसा निक्तिकार ने स्पष्ट किया है। निक्षेग के माध्यम से दशा की व्याख्या करते हुए भावदशा के दो प्रकार बताए गए हैं—आयुविमाकदशा और अध्ययनशा । आधुनिपाकदशा के दस तथा अध्ययन दशा के दो प्रकार सत्ताए हैं—छेटी अध्ययनदशा के लिए दसाश्रुतस्कंध के दस अध्ययनों की ओर संकेत किया है तथा बड़ी अध्ययन दशा ज्ञाताधर्मकथा को माना है। नियुक्तिकार कहते हैं कि जिस प्रकार वस्त्र की विभृशा के लिए उसकी दा किनारी ही है, वैसे ही ये दशाएं हैं। रचनाकार छेदसूत्रों के रचनाकार चतुर्दशपूर्वी आचार्य भद्रबाह थे। पंचकल्पभाग्य तया दशावतरक नियुक्ति की प्रथम गाथा में भद्रबाहु को वंदना करते हुए कहा गया है कि दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कला और सबजार – इन तीन छेदसूत्रों के कर्ता प्राचीनगोत्री आचार्य भद्रबाहु हैं । चतुर्दशापूर्धी आवश्यकता होने पर पूर्वो में सूत्रों का नि!हण करते हैं अत: धृति, स्मृति एवं संहनन आदि की क्षीणात देखकर आचार्य भद्रबाहु ने पूर्वी से छेदसूत्रों का निर्मूहण किया। निशीध का निर्मूहण नौवें पूर्व के प्रत्याख्यानपूर्व की तृतीय आरवस्तु से हुआ। अध्ययन एवं विषयवस्तु दशाश्रुतस्कंध के दश अध्ययनों के नाम नियुक्तिकार के अनुसार इस प्रकार हैं.--१ असमाधि २ सबलत्व ३. अनाशातना ४. गशिगुण ५. मन:समाधि ६. श्रावकप्रतिमः ७. भिक्षप्रतिमा ८ कल्प (पज्जोसवणाकप्प) ९. मोह १०. निदान । ठाणं सूत्र में संख्या के साथ अध्ययनों के नामों का उल्लेख १. बीस असमाधिस्थान ६. ग्यारह उपासकप्रतिमा २ इक्कीस बलदोष ७ बारह भिक्षुपतिमा ३. तेतीस आशातना ८ पर्युषण्णकल्प ४ अण्टविध गणिसंपदा ९ तीस मोहनीयस्थान ५. दश चित्तस्माधिरान १७.आजारिस्थान । दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति छेदसूत्रों पर यह स्वतंत्र रूप से नियुक्ति मिलती है। अन्य छेदसूत्रों पर लिखी गयी निझुक्तियां १. पंकभा. २५। २. पणं १५/१५. ३ ५। ४. दनि ५। ६. आनि ११। ७ दनि ८. ८. ग १०/११५ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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