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________________ पहला अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा १. सभी सिखों, तीर्थकरों तथा अनुयोगदायकों को बन्दना कर मैं आचारांग की नियुक्ति का प्रतिपादन करूंगा। २. आचार, अंग, श्रुतस्कंघ, ब्रह्म, परण, शस्त्र, परिक्षा, संझा, दिशा-इन सब के निक्षेप करने चाहिए। ३. घरण और विशा को छोड़कर सबके चार-चार निक्षेप होते है । चरण शब्द के छह तथा दिगा शब्द के सात निक्षेप होते हैं। ४. जिस शब्द के जितने निक्षेप ज्ञात हो उसके ये सभी निक्षेप करने चाहिए । जिसके सभी निक्षेप ज्ञात न हों, वहां चार निक्षेप--नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव-अवश्य करने चाहिए। ५. आचार' तथा अंग का वर्णन किया जा चुका है। इनके चार-चार निक्षेप होते हैं । भावाचार के निक्षेप भिन्न हैं । उनका नानात्व मैं बताऊंगा । ६. भावाचार के एकार्थक शब्द, उसका प्रवर्तन, उसकी प्रथमाङ्गता, गणिस्थान, परिमाण, समवतार तथा सार-इन सात द्वारों से उसका नानात्व है। ७. आचार, आचाल, मागाल, आकर, आश्वास, आदर्श, अंग, आचीर्ण, आजाति तथा आमोक्ष-ये भावाचार के एकार्थक है । ८. सभी तीर्थकरों के तीर्य-प्रवर्तन के समय पहले माचार (आचारांग) का प्रवर्तन होता है। शेष ग्यारह अंगों का प्रणयन क्रमशः होता है। ९. बारह अंगों (द्वादशांगी) में 'आधार' प्रथम अंग है। इसमें मोक्ष का उपाय-चरण करण का निरूपण है और यह प्रवचन का सार है। १०. 'आचार' को पढ़ लेने पर सारा श्रमण-धर्म परिशात हो जाता है। इसलिए . 'आचारघर' को पहला गणिस्थान कहा जाता है। ११. इस आचार (ग्रंथ) के ब्रह्मचर्य नामक नौ अध्ययन है । इसके अठारह हजार पद है। (इससे हेयोपादेय जाना जाता है इसलिए) यह वेद है। इसकी पांच चूलिकाएं हैं। पद-परिमाण से यह बहु' बहुतर' है। १२-१४. आचाराग्र अर्थात् चूलिकाओं के अयं का समवतार नौ ब्रह्मचर्य (आचारांग) के अध्ययनों में होता है । उनका पिरितार्थ शस्त्र-परिशा में समवतरित होता है। शस्त्र-परिज्ञा का अर्थ षड्जीवनिकाय में तथा षड्जीवनिकाय का अर्थ पांच व्रतों (महावतों) में समवतरित होता है 1 पांच महायतों का समवतार धर्मास्तिकाय आदि समस्त द्रव्यों में तथा समस्त पर्यायों के अनन्तवे भाग में होता है। १. दशवकालिक नियुक्ति, गाथा १५४-६२ । से बहु (पद-परिमाण वाला)। २. उत्तराध्ययन नियुक्ति', गाथा १४४-५८। ४. पांचवीं चूलिका-निशीथ के प्रक्षेप से बहुतर ३. चार चूलिकात्मक द्वितीय श्रुतस्कंध के प्रक्षेप (पद-परिमाण वाला)।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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