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विषयानुक्रम
४७,४६.
मंगलाचरण एवं माचारोग नियुक्ति के कथन' २९. की प्रतिज्ञा। आचार, अंग, श्रुतस्कंध आदि के निक्षेपों की ३१,३२. प्रतिज्ञा ।
३३,३४. चरण और दिशा शब्द के निक्षेपका संकेत। निक्षेप के उपयोग की विधि ।
३६. भावाचार के निरूपण की प्रतिज्ञा।
३७. आजार शब्द के एकार्थक, प्रवर्तन आदि सात द्वारों के कथन की प्रतिज्ञा। आचार शब्द के एकार्थक । आचारांग का रचनाकाल ।
४२. आचारांग की विषयवस्तु । आचारधर प्रथम गणिस्थान (गणिसंपदा)।
४३.
४४,४५, आचारांग का नाम परिचय । पहला अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा
आचारांग (पूलिका) का आचारांग या शास्त्रपरिज्ञा में समवतरण ।
४९,५०. शस्त्रपरिज्ञा तथा षट्जीवनिकाय का ५१-५८. समवतरण।
५९. १४,१५ महाव्रतों का समवतरण । १६,१७ अंग आदि के सार के विषय में जिज्ञासा एवं ६१.
समाधान । ब्राह्मण आदि वर्गों की उत्पत्ति । मनुष्य जाति की एकता तथा वणो की ६३. उत्पत्ति का इतिहास।
६४-६६. स्थापना ब्रह्म की संख्या का उल्लेख ।
सात वर्णों का उल्लेख । २२-२५. अंबष्ठ आदि नौ वर्णान्तर जासियों का ६७.
वर्णन । २६,२७. वर्णान्तरों के संयोग से होने वाली उत्पत्ति । २८. द्रध्य और भाद ब्रह्म का स्वरूप।
चरण शब्द के निक्षेप। भावचरण के प्रकार। आचारोग के अध्ययनों के नाम । अध्ययनों की विषयवस्तु । शस्त्रपरिज्ञा के अधिकार। द्रव्यशस्त्र और भाषशस्त्र का स्वरूप । द्रव्यपरिक्षा और भावपरिज्ञा का स्वरूप । द्रव्यसंज्ञा और भावसंजा के भेद । संज्ञाओं के सोलह भेद । दिशा शब्द के निक्षेप । द्रध्यदिशा का स्वरूप । दिशा तथा अनुदिशाओं का उत्पत्तिस्थल । दिशाओं के नाम। दिशाओं का निरूपण । दिशाओं का संस्थान (आकृति) । पूर्व-पश्चिम आदि धार ताप दिशाओं का वर्णन। मेरुपर्वत के साथ दिशाओं का सम्बन्ध । प्रज्ञापकदिशा के १८ भेद तथा नाम । प्रज्ञापकदिशाओं के संस्थान । भावदिशा के भेद। दिशाओं की कुल संख्या । प्रज्ञापकदिशा में ही जीव और पुद्गल की गति । अस्तित्व-बोध के कुछ प्रश्न । अन्तरप्रज्ञा अथवा अतीन्द्रियज्ञानी द्वारा जातिस्मृति अथवा विशिष्ट ज्ञान की उपलब्धि । अस्तित्व-बोध के अन्य साधन । पृथ्वीकाय के निक्षेप, प्ररूपणा आदि नो अधिकार । पृथ्वी शब्द के निक्षेप।
६२.
२०.
२१