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________________ २२३ उत्तराध्ययन नियुक्ति तेवोसो अध्ययन : केशि-गौतमोय ४४५,४४१. गौतम शब्द के चार निक्षेप हैं - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाद। द्रव्य के दो भेद-आगमतः, नो-आगमतः। नो-आगमतः के तीन भेद हैं-जशरीर, भव्यशरीर और सव्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त के तीन भेद हैं-एकभबिक, बदायुष्क और अभिमुखनामगोत्र । ४४७,४४. गौतम नाम, गोत्र का वेदन करता हुआ भावगौतम होता है। इसी तरह केशी के भी घार निक्षेप होते हैं । गौतम और के शी के संवाद से समस्थित इस अध्ययन को केशिगौतमीय कहा गया है। ४४९-५१. शिक्षानत, लिग वेष, शत्रुपराजय, पाशावकर्तन, तंतुबन्धन-उद्धार-तृष्णाक्षय, अग्नि-निवपिन, दुष्ट का निग्रह, पय-परिज्ञान, महास्रोतनिवारण, संसार-पारगमन, तम का विधातन, स्थानोपसंपदा-ये केशी और गौतम के बारह पर्चनीय विषय थे। चौबीसवां अध्ययन : प्रवचनमाता ४५२,४५३. प्रवचन शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, दृष्य और भाव । द्रव्य के दो भेद है-आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमतः के तीन भेद हैं-शशरीर, भव्यशरीर तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त में कुतीथिक मादि का ग्रहण होता है। भावप्रवचन में द्वादशांग का समावेश है । इसे गणिपिटक भी कहा जाता है । ४५४-५६. मातृ शब्द के पार निक्षेप - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य के दो भेद -आगमतः, नो-आगमतः । नो-मागमत: के तीन भेद है-ज्ञशरीर, भव्यशरीर और तदव्यतिरिक्त । द्रव्यमात है-भाजन में द्रव्य अर्थात् मोदक आदि । समितियां आदि को भावमात कहा जाता है। इनमें द्वादशांग रूप प्रवचन समाविष्ट है इसलिए इस अध्ययन का नाम प्रवचनमाता है। पच्चीसवां अध्ययन : यज्ञीय ४५७-५९. यज्ञ शम्द के चार निक्षेप है-नाम, स्थापना, द्रष्य और भाव । द्रव्य के दो भेद है-आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमतः के तीन भेद है-शशरीर, भव्यशरीर और तव्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त में ब्राह्मण आदि के यश आते हैं । तप, संयम का अनुष्ठान और आदर करना भावयज्ञ है । विजयघोष की यज्ञक्रिया में जयघोष अनगार आए। यज्ञ से समुस्थित होने के कारण इस अध्ययन का नाम 'यशीय' हो गया। ४६०,४६१. वाराणसी नगरी में काश्यपगोत्रीय दो विप्र थे। उनके पास घन और स्वर्ण का विपुल कोष या । वे षट्कर्मरत थे और चारों वेदों के ज्ञाता थे। उन दोनों जुड़वां भाइयों में परस्पर बाह्य प्रीति और आंतरिक अनुरक्ति थी। एक का नाम जयघोष और दूसरे का नाम विजयघोष था 1 वे भागमकुशल और स्वदाररत थे। ४६२-६७. एक दिन जयघोष गंगानदी पर स्नान करने गया। वहां उसने देखा कि सर्प मेंढक को निगल रहा है और सर्प को कुरर पक्षी ने पकड़ रखा है। सर्प को भूमि पर गिराकर उस पर
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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