SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० नियुक्तिपंचक ३८७. संजय नाम, गोत्र का वेदन करता हुआ भावसंजय होता है। भावसंजय से समुस्थित होने के कारण इस अध्ययन का नाम संजयीय हुआ है। ३८८.३८९. कांपिल्यपुर नगर का राजा संजय सेना सहित मृगया के लिए निकला । वह घोड़े पर सवार होकर भूगों को केसर उद्यान की ओर खदेड़ कर ले गया। यहां एकत्रित मृग अत्यन्त भयभीत हो रहे थे । वह रसलोलुप राजा उन्हें यहाँ यथित करने लगा। ३९०. वहाँ केसरउधान में दोषमुक्त गर्दभालि मनगार छाए हुए मंडप में ध्यान कर रहे थे। ३९१. घोड़े पर सवार राजा ने मुनि को देखा और भाकुल-व्याकुल होकर बोला-अहो ! खेद है, मैं अभी ऋषिहत्या से लिप्त हो जाता पर बच गया। ३९२-९४. राजा घोड़े को छोड़कर अनगार के पास गया । विनम्रता से बन्दना करके अपराध के लिए क्षमा मांगने लगा । अनगार मौन धारण किए हुए थे इसलिए राजा को कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया । तब राजा इनके तेज-तप से घबराकर इस प्रकार बोला-'भंते !मैं कोपिल्यपुर का अधिपति हूँ । मेरा नाम संजय है । मैं आपकी शरण में आया हूं। आप मुझे अपने तपोजनित तेज से न जलाएं ।' ३९५-९७. मुनि बोले. 'राजम् ! मैं तुझे अभय देता हूं। तुम इस पानी के बुबुदे के समान अनित्य मनुष्य जीवन में अपने दुःस्वजनक मरण को जानकर भी हिंसा को प्रश्रय देते हो । क्या यह उचित है ? संसार में सब कुछ छोड़कर एक दिन अवश्य हाना होगा। फिर इन किपाकफल के समान मोगों में क्यों आसक्त होते हो ?' राजा ने मुनि से धर्म का रहस्य जाना और समग्र वैभव से युक्त राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या स्वीकार कर ली। ३९८. बहुत वर्षों तक तपश्चरण के द्वारा सारे मलेशों--राग-द्वेष बादि को नष्ट कर राजा ऐसे स्थान को प्राप्त हो गया, जहां जाकर किसी प्रकार का शोक नहीं करना पड़ता अर्थात् शारीरिक और मानसिक दुःखों से ग्रस्त नहीं होना पड़ता ।' उन्नीसवां अध्ययन : मृगापुत्रीय ३९९,४००. मृगा शब्द के चार निक्षेप है--नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रष्य के दो भेद है आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमतः के तीन भेद है ज्ञशरीर, भव्यशरीर, तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त के तीन भेद है—एकविक, बसायुष्क और अभिमुखनामगोत्र । ४०१. मृगा के मायु, माम, गोत्र का वेदन करने वाली भावमृगा होती है । इसी प्रकार पुष शब्द के भी चार निक्षेप है। ४०२. मृगादेवी महारानी के पुत्र बलपी से यह अध्ययन समुत्पन्न हुआ इसलिए इसका नाम मृगापुत्रीय है। ४०३-१०. सुग्रीव नगर में बलभद्र नाम का एक राजा था। उसकी पटरानी का नाम मगावती था । उन दोनों के बलधी नाम का पूत्र था। वह धीमान, बचऋषभसंहनन वाला तथा सद्भवमुक्तिगामी पा । उसे युवराज बना दिया गया। वह विकसित हृदयवाला युवराज रमणीक और १. देखें परि० १, कथा सं० ५५
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy