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________________ नियुक्तिपंचक ३३६,३३७. ब्रह्मदत्त काम्पिल्यपुर, गिरितटक, चम्पा, हस्तिनापुर, साकेत, समकटक, अवश्यानफ, वंशीप्रासाद, समकटक आदि नगरों में घूमता हुआ अटवी में पहुंचा। वहां पर तृषा से अभिभूत हो गया । उसने वरधनु से कहा तो वह ब्रह्मदत्त को एक वटवृक्ष की छाया में लेटाकर बोला --'मैं एक संकेत दूंगा तब तुम यहां से पलायन कर जाना ।' यह कहकर वह स्वयं पानी की खोज में निकला । बह जल लेकर वापस लौट रहा था तब दीर्घपृष्ठ के अनुषर कुमार को खोजते हुए वहां पहुंच गए। उन्होंने दरधुन को पकड़ लिया फिर उसे बंधन से बांधकर आक्रोश दिखलाया, दुष्टवचनों से उसकी मसना की। ___ ३३८. अनुचरों ने वरधनु को पीटते हुए पूछा-'बोलो, कुमार कहाँ है ? तुम उसे कहां ले गए हो ?' वरधनु ने एक संकेत किया और पानी के साथ एक विरेचन की गुटिका ले ली। उस गुटिका से बेहोगी मा गई और मुंह में झाग आ गए । उसने कपटमृत्यु का वरण कर लिया । गुप्तचरों ने उसे मृत समझकर छोड़ दिया। ३३९. इधर कुमार बरधनु की सांकेतिक भाषा को समझकर, भयभीत होता हुआ उत्पथ से पलायन कर गया । मार्ग में एक देव ने उसके सामर्थ्य की परीक्षा करने के लिए स्पविर का रूप बनाकर उसे धोखे में मल दिया। ३४०. वहां से घूमता हुआ कुमार वटपुर, ब्रह्मस्थल, वट स्थल, कोशाम्बी, वाराणसी, राजगृह, गिरिपुर, मथुरा और महिछत्रा आदि नगरों में पहुंचा। ३४१. कुमार अहिच्छत्रा से मला और एक महान् अटवी में पहुंच गया। वहां उसने आभरण, वस्त्र एवं गुणों से युक्त एक वनहस्ती देखा । बह उस पर आरूढ़ हो गया। हाथी कुमार को भयंकर वन में ले गया । कुमार अटवी से बाहर निकलकर वटपुर गया। यटपुर से श्रावस्ती के लिए प्रस्थान किया। चलते-चलते एक छोटे गांव में पहुंचा। ३४२. नदी और अरण्य गहन होते हैं पर पुरुषों के हृदय उससे भी अधिक गहन होते हैं। आप अपना पुण्यपत्त' दें। हमारे प्रिय पुत्र हुआ है। ३४३. वहां से कुमार सुप्रतिष्ठानपुर में पहुंचा । वहां भिकुंडी राजा से निष्कासित कन्या कुसकुणी जितशत्रु राजा के पास से मथुरा से अहिच्छत्रा जा रही थी। वह बीच के एक गांव में मिती। ३४४,३४५. इन्द्रपुर में शिवदत्त तथा समपुर में विशाखदत-इन दोनों की दो पुत्रियां कुमार को विट वेष में प्राप्त हुई। उसे यहां राज्य भी प्राप्त हुआ। वहां से कुमार राजगृह, मिथिला, हस्तिनापुर, चंपा, श्रावस्ती आदि नगरों में धूमा। यह कुमार ब्रह्मदत्त के नगरभ्रमण (नगरहिर्ग) का अवलोकन है। ____३४६. कुमार को चक्ररत्न की उत्पत्ति हुई । वह दिविजयी बन गया। दीघंपृष्ठ राजा का रोष भी शांत हो गया । (देवताओं द्वारा कल्पवृक्ष के फूलों की माला अपित करने पर) कुमार को जातिस्मृति हुई कि मैं नलिनीगुल्म में देव रूप में उत्पन्न हुआ था। १. मानन्द से हत वस्त्र ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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