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________________ २१४ नियुक्तिपंपक बारहवां अध्ययन :हरिकेशीय ३११,३१२. हरिकेश शब्द के चार निक्षेप है-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य के दो भेद है-आगमत:, नो-आगमतः । नो आगमत: के तीन भेद -शरीर, भव्यशरीर और सव्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप के सीन भेद हैं-एकभषिक, बदायुष्क और अभिमुखनामगोत्र। ३१३. हरिकेश नाम, गोत्र का वेदन करता हुआ भावतः हरिकेश होता है। हरिकेश से उद्भूत होने से इस अध्ययन का नाम हरिकेशीय है । ३१४, हरिकेश ने पूर्व भव में प्रजित शस्त्र युवराज के पास दीक्षा ली थी । किन्तु जातिमद के प्रभाव से वह हरिकेश कुल में उत्पन्न हुआ। ___३१५. मथुरा में प्रवजित शंखमुनि विहार करते हुए गजपुर नगर में गए। वहां एक पुरोहित पुत्र को मार्ग पूछा । उसने द्वेषवश अग्नि के समान उष्ण मार्ग बता दिया। उस मार्ग पर पाडिहेरद्वारपाल की भांति सदा एक देव सन्निहित रहता था। मुनि उस मार्ग से गए। (देवयोग से वह भीतल हो गया ।) ३१६. हरिकेश, चण्वास, श्वपाक, मातंग, बाह्य, पाण, पदानघन, मृताश, प्रमशानवृत्ति और नीच-ये एकार्थक शब्द हैं। ३१७. हरिकेश का जन्म 'मृतगंगा' (सूखे प्रवाह थाली गंगा) के तट पर हुआ । प्रव्रजित होकर वे वाराणसी के तिन्दुक बन में ठहरे। वहां गंडोतिन्दुक मक्ष का मंदिर था। कोशलिक राजा की कन्या सुभद्रा वहां पूजा करने आई । उसने मुनि का रूप देखकर घृणा से उस पर थूक दिया । उसका मुनि के साथ विवाह । मुनि द्वारा परित्यक्त । मुनि का यशबाट में भिक्षा के लिए जाना । ३१८. बलकोट्ट नामक हरिकेशों का अधिपति बलकोट्ट था । उसके दो स्त्रियां थीं-गौरी और गान्धारी। गौरी ने स्वप्न में बसन्त मास देखा । बलकोट्र में उत्पन्न होने के कारण पुत्र का नाम 'बल' रखा । उत्सव में सपं के आने पर उसे मार डाला गया। दूसरी बार भेरुण्ड सर्प का (दुमुही) निकलना। उसे नहीं मारा गया। ३१९. मनुष्य को भद्र होना चाहिए । भद्र मनुष्य कल्याण को प्राप्त होता है। सबिष सर्प मारा जाता है और निर्विष भेरुण्ड सर्प छोड़ दिया जाता है। ३२०. वाराणसी नगर के तिदुक उद्यान में तिदुक नामक यमायतन था। वहां गंजीतिदुक यम रहता था। उसी के कारण उस उचान का माम गंडीतिदुकवन पक्षा। ३२१. एक दूसरा यक्ष गंडीतिदुक पक्ष को अपने उद्यान में ले गया। गंडी यक्ष ने कहा-'अरे ! यहां तो मुंडितमात्र होने वाले दीक्षित व्यक्तियों की जमात है। यहाँ तो स्त्रीकथा, जनपदकया और राजकथा हो रही है । चलो, हम तिन्दुक उद्यान में लौट चलें ।" १. देखें परि०६, कथा सं०५४
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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