SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० निर्मुक्तिपंचक १६०. लोक में इनकी प्राप्ति दुर्लभ है-मनुष्यता, आयक्षेत्र, जाति, कुल, रूप, आरोग्य, आयुष्य, बुद्धि, धर्म-श्रवण, धर्म का अवधारण, श्रद्धा और संयम । ११. १. चुल्लक (बारी-बारी से भोजन), २. पाशक, ३. धान्य, ४. छूत, ५. रत्न, ६. स्वप्न, ७. चक्र, ८. धर्म, ९. युग तथा १०. परमाणु --मनुजस्व की प्राप्ति के ये दस दृष्टान्त १६२. निम्नोक्त की प्राप्ति भी दुर्लभ है-इन्द्रियों की प्राप्ति, इन्द्रियों की नियतंना-- पूर्ण रचना, पर्याप्ति की समग्रता, अंग-उपांगों की पूर्णता, देश का सौस्थ्य, मुभिक्ष अथवा विभव की प्ति, आरोग्य, श्रद्धा, ग्राहक अर्थात् गुरु, उपयोग- स्वाध्याय आदि में उपयुक्तता, अर्थ-धर्म विषयक जिज्ञासा आदि । १६३,१६४. दुर्लभ मनुष्य जन्म को प्राप्त करके भी जीव कुछेक कारणों से हितकारी और संसार से पार लगाने वाली धर्मश्रुति को प्राप्त नहीं कर सकता। वे कारण ये हैं-आलस्य, मोह, अवज्ञा, अहंकार, क्रोध, प्रमाद, कृपणता, भय, शोक, अज्ञान, व्यासप, कुतूहल तथा रमण-कुक्कुट आदि की क्रीडाएं आदि । १६५. मिथ्यादृष्टि जीव उपदिष्ट प्रवचन पर प्रक्षा नहीं करता। वह उपदिष्ट अथवा अनुपदिष्ट असद्भाव अर्थात् कुप्रवचन पर श्रद्धा कर लेता है। १६६. सम्यग्दृष्टि जीव उपदिष्ट प्रवचन पर तो श्रद्धा करता ही है, किन्तु वह मज्ञानवश अथवा गुह-नियोग-गुरु के विश्वास पर असद्भाव-कुप्रवचन पर भी श्रवा कर लेता है। १६७.. बहरतवादी -क्रिया की निष्पत्ति में बहुत समय लगते हैं, ऐसा मानने वाले । जीवप्रदेशवादी --अन्त्य प्रदेश ही जीव है अथवा अन्त्यप्रवेशजीववादी। • अव्यक्तवादी-सब कुछ अव्यक्त है, ऐसा मानने वाले । • समूच्छेदवादी-एक क्षण के पश्चात सर्वया नाश मानने वाले । द्विक्रियवादी-एक समय में दो क्रियाओं को स्वीकार करने वाले । • राशिकवादी तीन राशि --जीव, अजीव, नौजीव मानने वाले। • अवतिकवादी-कर्म आत्मा से नहीं बंधते, ऐसा मानने वाले । मैं क्रमशः इनका निर्गमन अर्थात् उत्पत्ति का कथन करूंगा । १६८,१६९. बहरतबाद जमासि से उद्भूत हुआ। जीवप्रदेशवाद तिष्यगुप्त से, भव्यक्तवाद आचार्य आषाढ से, समुच्छेदवाद अश्वमित्र से, द्विक्रियवाद आचार्य गंग से, पैराशिफवाद षडलक (रोहगुप्त) से तथा स्पृष्ट अबद्धिकवाद स्थविर गोष्ठामाहिल से उद्भूत हुआ। १७.. निलयों से सम्बंधित नगर क्रमशः इस प्रकार हैं - श्रावस्ती, ऋषभपुर, श्वेतविका, मिथिला, उल्सुकातीर, अतरंजिका, दशपुर और रपदीरपुर। १. देखें परि०६, कषा सं. २६-३५ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy