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________________ सत्तराध्ययन नियुक्ति १९९ १४५. द्रव्यांग के छह प्रकार है-गंधांग, औषधोग, मांग, आतोद्यांग, शरीरांग और युवांग । प्रत्येक के अनेक प्रकार ज्ञातव्य है। १४६-४८. गंधांग के ये प्रकार है-जमदग्निजटा, हरेणुका-प्रियंगु, शबरनिवसनफतमालपत्र, सपिन्निक-ध्यामक गंधद्रव्य युक्त, वृक्ष की बाह्य त्वक् चातुति-से गंधद्रव्य मल्लिका से वासित होकर अर्थात् चूर्ण बनकर कोटि मूल्य के हो जाते हैं, बहुमूल्म बाले हो जाते हैं । योसोर र ह्रींवर सुमषित भविशेष) का एक पल तथा देवदारु का एक कर्ष, शतपुष्पा तथा तमाल-पत्र-दोनों का एक-एक पलिका मात्र हन गन्ध दृश्यों को पीस कर एक चूर्ण बनाया जाता था। इसी चूर्ण से स्नान, विलेपन और पटवास किया जाता था। चंडप्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता ने इनका प्रयोग कर उदयन को मोहित किया था। १४९,१५०. औषधांग-दो रजनी-पिंडदार और हल्दी, माहेन्द्रफल-कुटज के बीज, समूषण-त्रिकटुक के तीन संग-सूठ, पीपल, काली मिरच, सरस-आर्द्रक, कनकमूल-बिल्वमूल इनके साथ आठबी उदक-इससे जो गोली बनती है, वह खाज, तिमिर-तिरमिरा (आंख का रोग, आधा सीसी (अर्ध शिरोरोग), तात्तीयीक (तीन दिनों से आने वाला ज्वर), चाथिक (चार दिनों से आने वाला ज्वर)-इन सभी रोगों को शांत करती है तथा चूहे. सर्प बादि के काटने पर काम आती है। १५१. मद्योग-सोलह भाग द्राक्षा, चार भाग घातकी पुष्प (घव के फूल) और एक आढक (मागध के मान से) इक्षुरस-ये मद्यांग है। १५२. आतोद्यांग-एकमुकुंदा-वादिन विशेष का आतोपांग है तूर्य । एक अभिमारक नामक वृक्षविशेष का काठ अग्नि का अंग है । वह अग्नि का उत्पादक है। शाल्मली पुष्पों का बद्ध गुम्या भामोडक होता है। वह गुच्छा आमोडकोग है। १५३,१५४. शरीरांग-शिर, छाती, उदर, पीठ, दोनों भुजाएं तथा दो जरू-ये शारीर के माठ अंग हैं। शेष अर्थात् कान, नाक, आँख, हाथ, पैर, जंघा, नख, केश, दाढी, मूंछ, अंगुली, होठये अंगोपांग हैं। १५५. युद्धांग-यान, आवरण---कवच आदि, प्रहरण-तलवार मादि, युद्ध-कौशल, नीति, दक्षता, व्यवसाय प्रवृत्ति, शरीर, थायोग्य ये सारे मिलकर युद्धांग होते हैं । १५६. भावांग--भावांग के दो प्रकार हैं-श्रुतांग और नोश्रुतांग । थुतांग के आचारांग आदि बारह भेद हैं तथा नोश्रुतोग अर्थात् अश्रुतांग के चार भेद हैं। १५७. मनुजत्य, धर्मश्रुति, धवा और तप-संयम में पराक्रम—ये भावांग संसार में दुर्लभ हैं। १५८. अंग, दशभाग, भेद, अवयव, असकल, चूर्ण, खंड, देश, प्रदेश, पर्व, शाखा, पटल तथा पर्यवखिल- ये सब अंग के पर्यायवाची शब्द हैं। १५९. दया, संयम, लज्जा, जुगुप्सा, अछलना, तितिक्षा, अहिंसा और ह्री-ये सारे भावांग अर्थात संयम के पर्यायवाची शब्द है।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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