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________________ १९६ नियुक्तिपंचक १०७. कोल्लकेर नगर में स्थविर आचार्य का स्थायी निवास था। दत्त उनका शिष्य था। वह घुमक्कड़ था। आचार्य ने उसे धातृपिण्ड दिलाया। आचार्य की अंग्रसी का देवयोग से प्रज्वलन । गुरु ने चर्या-परीषह सहन किया।' १०८. कुरुदत्त का पुत्र प्रवजित हुआ। वह गजपुर से साकेत गया। पोर-गवेषक ने उसको पोर समझकर शिर पग्नि जला नि साराकोरीबद सहन किया।' १०९,११०, कौशाम्बी नगरी में यज्ञदत्त ब्राह्मण के दो पुत्र थे-सोमदत्त और सोमदेव । दोनों आचार्य सोमभूति के पास दीक्षित हो गए। वे स्वज्ञाति (संशात) पल्ली में आए। विकट (मघ) के कारण उनको वैराग्य हो गया। दोनों ने नदी के तीर पर जाकर प्रायोपगमन संथारा कर लिया। नदी के प्रवाह ने उन्हें समुद्र में ला केला। उन्होंने समता से शय्या-परीषह को सहन किया ११. राजगृह में अर्जुन मालाकार। उसकी पत्नी थी स्कन्दश्री। मुद्गरपाणि यक्ष का मंदिर । गोष्ठी के सदस्यों द्वारा स्कन्दधी पर बलात्कार। भगवान् का आगमन । सुदर्शन का भगवा वंदना के लिए जाना । दीक्षित होकर उसने समभाव से आक्रोश-परीषह को सहन किया।' ११२-१४. श्रावस्ती नगरी । जितशत्रु राजा 1 धारिणी देवी। स्कन्दक पुन । पुरन्दरयशा पुषी । उसका विवाह दंडकी नामक राजा के साथ हुमा। कुंभकारकटक नगर में तीर्थंकर मुनिसुव्रत के शिष्य स्कन्दक पांच सौ मुनियों के साथ वहाँ आए । देवी पुरंदरयशा बहीं थी। महाराज दंडकी का पुरोहित पालक था। उसने रुष्ट होकर पांच सो मुनियों को कोल्हू में पिलवा दिया। उन्होंने माध्यस्थभाव के चिन्तन से राग-द्वेष के तुलाग्र को सम कर वध परीषह सहते हुए मपना कार्य सिद्ध कर लिया। ११५. याचना परीषह में बलदेव' का उदाहरण तथा अलाभ परीषह में कृषिपारासर अर्थात् हुंदणकुमार' का उदाहरण ज्ञातव्य है। ११६. मथुरा में कालवेशिक पुत्र प्रश्नत्रित होकर मुद्गौलपुर में एकलविहारप्रतिमा में स्थित हुआ । सियाल द्वारा भक्षण। राजा द्वारा सिपालों को भगाना पर सियालों का उपसर्ग । मुनि ने गमभावपूर्वक रोग परीषह को सहन किया।' ११७. श्रावस्ती के भद्र नामक राजकुमार को राज्य में गुप्तचर समझकर शरीर को क्षतविक्षत कर नमक छिड़का और दर्भ से वेष्टित किया । उसने समतापूर्वक तृणस्पर्श परीषह को सहन किया। ११८. चंपा नगरी में सुनन्द श्रावक । वह जल्ल-धारण में जुगुप्सी या । वह मरकर कौशाम्बी नगरी में धनी के घर पुत्र रूप में उत्पन्न हुमा । कालान्तर में वह प्रवजित हुआ। उसके शरीर में सुगंध लेकिन देवयोग से फिर मूल रूप में आ गया।" १.देखें-परि०६, कथा सं०११ ६. वही, कया सं० १६ २. वही, कथा सं० १२ ७. वही, कथा सं० १५ ३. वही, कथा सं० १३ ८. वही, कथा सं० १८ ४. वही, कथा सं०१४ ९. वही, ५. वही, कथा सं०१५ १०. वही, कया सं.२०
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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