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________________ नियुक्तिपंचक १२. श्रुतस्कंध शब्द के चार निक्षेप है-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। अब मैं अध्ययनों के नाम तथा उनका अधिकार बताऊंगा। १३-१७. उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययन हैं। उनके नाम क्रमशः ये हैं (१) विनयश्रुत (१३) चित्रसंभूत (२५) मशीय (२) परीषह (१४) इषुकारीय (२६) सामाचारी (३) चतुरंगीय (१५) सभिक्षु (२७) खलुकीय (४) असंस्कृत (१६) समाधि-स्थान (२८) मोक्षगति अकाममरण (१७) पापश्रमणीय (२९) अप्रमाद (६) निर्ग्रन्थीय (१८) संयतीय (३०) तप (७) और (१९) मृगचारिका (३१) धरण (८) कापिलीय (२०) निर्ग्रन्थता (३२) प्रमादस्थान (९) नमिप्राज्या (२१) समुद्रपालीम (३३) कर्मप्रकृति (१०) द्रुमपत्रक (२२) रथमेमिक (३४) लेण्या (११) बहुश्रुत पूज्य (२३) केशिगौतमीय (३५) अनगारमार्ग (१२) हरिकेशीय (२४) समिति (३६) जीवाजीवविभक्ति । १५-२६, छत्तीस अध्ययनों के अधिकार-विषय इस प्रकार है(१) विनय (१३) निदान (२५) ब्रह्मचर्य के गुण (२) परीषह (१४) अनिदान (२६) सामाचारी ) दुर्लभ अंग (१५) भिक्षुगुण (२७) अशठता ) प्रमाद-अप्रमाद (१६) ब्रह्मचर्य गुप्सि (२८) मोक्षगति (५) मरण-विभक्ति (१७) पाप-वर्जन (२९) आवश्यक अप्रमाद (१) विद्या-चरण (१०) भोग ऋद्धि का परित्याग (३०) तप (७) रसगृद्धि का परित्याग (१९) अपरिकर्म (३१) चारित्र () अलाभ (२०) अनाथता (३२) प्रमादस्पान (९) निष्कपता (२१) विविक्तचर्या (३३) कर्म (१०) अनुशासन की उपमा (२२) स्थिरचरण (३४) लेश्या (११) पूजा (२३) धर्म (३५) भिक्षुगुण (१२) तपःऋद्धि (२४) समितियां (३६) जीव-अजीव २७. उत्तराध्ययनों के समुदयार्थ का संक्षोप में यह वर्णन है। यहां मैं आगे एक-एक अध्ययन का प्रतिपादन करूंगा। २८. उनमें पहला अध्ययन है—विनयश्रुत। उसका उपक्रम आदि द्वारों से प्ररूपण करना पाहिए । प्रस्तुत अध्ययन में विनय का अधिकार है, प्रसंग है। २८१. (निक्षेप तीन प्रकार का है--ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न और सूत्रालापकनिष्पन्न) ओधनिष्पन्न का अर्थ है--सामान्य श्रत । उसके चार प्रकार हैं-अध्ययन, अक्षीण, आय और क्षपणा।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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