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नियुक्ति साहित्य : एक पविक्षण
प्रथग अध्ययन की नियुक्ति में निर्मुचित्तकार ने अनेक जिज्ञासाओं को उपस्थित करके साधु की शिक्षाचर्या को समाहित किया है। अंत में न्यार के दस अवयवों का नामोल्लेख एवं उनकी व्याख्या प्रस्तुत क है। दूसरे अध्ययन की नियुवित्त में श्वमग का स्वरूप, पूर्व के १३ निक्षेप तथा माम के पोद-प्रभेदों का वर्णन है। पद के शेद-प्रभेदों का वर्णन काव्य व साहित्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। हसरे अध्ययन की नियुक्ति में मूलगाठ में आप किसी ३ब्द की व्याख्या न करके अध्ययन के नाम में आए शुल्लक आचार एवं कथा --इन टीन ) के निक्षेप एवं व्याल्या प्रस्तुत है। कथा के भेद-प्रभेदों का नियोंकेतकार ने सर्वागीण निरूपात किया है।
बौथे अध्ययन की नियुक्ति में घटकाय का वर्णन करके नियुक्तिकार ने जीव के अस्तित्व एवं पुनर्जन्म को सिद्ध करने में अनेक हेर प्रस्तुत किए हैं। यह सारा वर्णन दर्शन के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। आत्मा के संबंध में इतना तर्कसंगरा और यौक्तिक वर्णन नियुक्तिकर से पूर्व नही मिलता। दशवकालिक का पंच्च अध्ययन बहुत बड़ा है लेकिन इसकी नियुक्ति बहुत छोट है। निर्युक्टिकार ने पिंड एवं एषगा इन दो शब्द की व्याख्या प्रस्तुत की है। छठे अध्ययन का एक नाम धर्मार्थकाम भी है अत. निक्टिकार ने धर्म, ॐ और काम का विरत वर्णन किय है। सातवें उाक्मशुद्धि अध्ययन में भाषा के भेद उभेदों एवं शुद्धि का वर्णन किया गया है। अंत में भाषा-विवेक पर मार्मिक सूक्तियां भी मिलती हैं।
आठवें अध्ययन में प्रणिधि के भेद प्रभेदों का विस्तृत वर्णन है। नवें अध्ययन में बिनय के भेद-प्रभेदों एवं समाधि का विवेचन है। दसवें भवतु अध्ययन में भिक्षु के स्वरूम, लक्षण, उसमें एकार्यक एवं भिक्षु की कसौटिय का बन है। नियुक्तिकार ने भिक्षु को स्वर्ण की उपमा दी है। इसमें स्वर्ण के आठ गुण एवं चार कसौटियों का उल्लेख है।
प्रथम चूलिका की नियुक्ति में चूड़ा के निक्षेप एवं प्रथम चूड़ा का नाम रतिवाक्या की सार्थकता पर विचार किया गया है। द्वितीय चूलिका की नियुक्ति में साधु की प्रशस्त चर्या पर विचार हुआ है। अंत में मुनि मनक के समाधिमरण और उसके स्वर्गस्थ होने पर आचार्य शय्यंभव द्वारा इसके निर्ग्रहण का उद्देश्य स्ट किया गया है। दार्शनिक दृष्टि से इस नियुक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। दशवैकालिक की एक नयी नियुक्ति
आचार्य भद्रबाहु द्वारा रचित निक्ति के अतिरिका एक अन्य नियुक्ति की प्रति लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर के ग्रंथ- भंडार में निली। इसमें दागबलिक की अति संक्षिप्त नियुक्ति है। हरतप्रति के अधार पर लेखक के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती लेकिन पंडित दलसुखभाई मालवणिया के अनुरार यह नियुक्ति किसी अन्य आचार द्वारा रचित होनी चाहिए।
इस निर्मुक्ति में कुल ९ गाधाएं हैं, जिनमें कार गाथाएं मूल दशकालिकनियुक्ति की हैं तथा छह गाथाएं स्वतंत्र हैं। प्रारम्भिक चार गाथाओं में कर्ता, रचना का उद्देश्य तथा रचनाकाल का उल्लेख है। अंतिम छह गाथाओं में धूलिका की रचना के पीछे क्या इतिहाः रहा, इसका उल्लेख मिलता है। हारिभद्रीय टीका में बिना नामोल्लेख के यह घटना संक्षेप में निर्दिष्ट मात्र है। प्रस्तुत निरीके के अंत १ पशहाटी : २७८. २७२ .