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________________ PinciplundiPTRHIELHIR AHUtmiponri.III नियुक्तिपंचक और संग्रहणी कहा है। परिशिष्ट की भांति प्राचीनकाल में ग्रंथ के साथ चूलिका जोड़ दी जाती थी, जो सूत्र के अर्थ की सग्रहणी के रूप में होती थी। संग्रहणी का ॐ है शास्त्र में वर्णित और अनर्णित अर्थ का संक्षिप्त संग्रज । आचार्य शीलांक के अनुसार पूलिका का अर्थ अग्न है। अन्य का अर्थ उत्तरभार है। अध्ययनों तथा चूलिकाओं के नाम तथा उन पर कितनी-कित्नी नियुक्ति-गाधाएं लिखी गई, इसका उल्लेख इस प्रकार हैअध्ययन निर्मुक्तिमाथाएं अध्ययन नियुक्तिगाथाएं १. द्रुमपुष्पिका' -१२६ ।। ७ वयशुद्धि २४५-६८ २ श्रामण्यपूर्वक १२७-५२ ८. आचार-प्रणिधि २६९-८५ ३ क्षुल्लिकाचारकथा १५३-८८ २. विनय-समाधि २८६. ३०४ ४. षड्जीवनिका १८९-२१७ १०. सभिक्षु ३०५-३३ ५. पिंडैषणा २१७/१-२२१/ १ १. रतिवाक्या (प्रचू.) ३३४-४४ ६. महावारकथा २२२-४४ - २. विविक्तचर्या (हिचू.) ३४५-४९ नियंक्तिकर ने अध्ययनों के नामों का उल्लेख नहीं किया लेकिन अध्ययन त विषयवस्त का वर्णन किया है। उनके अनुसार दशकालिक के प्रथम अध्ययन में जिन-शासन में प्रचलित धर्म की प्रशंसा. दूसरे में संयम में धृति, तीसरे में आत्म-संयम में हेतुभूत लघु आचार कथा, चौधे में जीव-संयम. शंचवें में तत्र और रंयम में गुणकारक भिक्षा की दिशोधि, छठे अध्ययन में संयमी व्यक्तियों द्वारा आचरणीय नहती आचर-कथा, सातवें अध्ययन में वचन-विभक्ति (भाषा-विवेक), आठवें अध्ययन में अचार-प्राणधि, नौवें अध्ययन में विनय तथा अंतिम दसवें अध्ययन में भिक्षु का स्वरूप प्रतिमदित है। प्रथम चूलिका में संयम में विपद प्राप्त साधु को स्थिर करने के उपाय तथा दूसरी चूलिका में अत्यधिक प्रसाद गुणा —अप्रतिबद्ध पर्या तथा संघम में रत रहने से होने वाली गुणवृद्धि का वर्णन दशवकालिकनियुक्ति दशवकालिकनियुक्ति में ३४९ रथाएं हैं। इसमें नियुक्तिकार ने प्रथ्म अध्ययन के विस्तृत व्याख्या की है। पूरे नियुक्ति साहित्य का विहंगावलोकन करने पर ज्ञात होता है कि केवल दर वैकालिक के प्रथम अध्ययन की प्रथन गाथा के प्रत्येक शब्द की नियुक्तिकार ने विस्तृत व्याख्या की है। अन्यथा नियुक्तिकार किसी विशेष शब्द की ही व्याख्या करते हैं। प्रथम अध्ययन की पांच गाथाओं पर १२६ गाथाएं लिखी है. जिसमें मुख्य रूप से धर्म, मंगल, त्प, हेतु, उदाहरण आदि का वर्णन किया गया है। यद्यपि उदाहरण और हेतु के भेद-प्रभेदों का विस्तार नूल पाठ से सीधा संबंधित नहीं है पर न्याय-दर्शन के क्षेत्र में यह वर्णन अपना विशिष्ट स्थान रखता है। हेतु. आहरण अदि के भेद-भेदों को नियुक्तिकार ने कथाओं के माधान से स्पष्ट किया है। ये कथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण १. दशनि ३३४। २ दशहटी प. २६२। ३. तत्वाश्रुतसारी वृत्ति (ग ) में प्रथम अध्यान का गान वृक्ष-तुम मिलता है। ४. निकित में इसका दूसरा नाम 'माणात भी मिलत है। विशनि २१७)
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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