SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशकालिक नियुक्ति ३४७. अनिकेतवास, प्रतिरिक्तता (एकान्तवास), अज्ञात तथा सामुदानिक भिक्षा, अल्प उपधि, अकलह-यह ऋषियों की प्रशस्त विहारचर्या जीवनचयों है। ३४८. मुनि मनक ने इस दशवकालिक सूत्र को छह महीनों में पढ़ लिया। उसक' प्रवज्याकाल इतना ही या । उसके बाद वह समाधिभरण को प्राप्त हो गया। ३४९. मुनि मनक के दिवंगत होने पर आचार्य शम्यं भव की आंखों में आनन्द के आंसू आ गए । यशोभद्र आदि प्रमुख शिष्यों ने इसका कारण पूछा तो आचार्य शाय्यं भत्र ने मुनि मनक को अपना संसारपक्षीय पुष बताते हुए उसकी शिक्षा-दीक्षा तथा दशकालिक सूत्र के निर्युहण का इतिवृत्त कह सुनाया। दशकालिक सूत्र को अब सुरक्षित रखा जाए या नहीं, इस प्रसंग पर संध में विचार-विमर्म चला और इस आगम को भव्य जीवों के लिए बहुत कल्याणकारी बताया गया । तब से आज तक इस आगम का अध्ययन जैन परम्परा में अविच्छिन्न रुप से चल रहा है।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy