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________________ दशकालिक निति १४३. द्रष्यपद के ११ प्रकार है १. आकोट्टिम रुपए आदि के सिक्के को दोनों ओर से कटकर बनाना . २. उत्तीर्ण-प्रस्तर आदि में नाम आदि उत्कीर्ण करना । ३. उपनेय-चकूल आदि के संस्थान में मिट्टी के फूल बनाना । ४. पीडित-संवेष्टित वस्त्र में सप्लवर्ट। ५. रंग-वस्त्र का रंग । ६. प्रथित-गूंथी हुई माला। ७. बेष्टिम-पुष्पमय मुकुट । ८. पूरिम -छिदमय पुष्पकरंडक । ९. वातव्य-जुलाहे द्वारा वस्त्र बुनते समय उसमें अश्व आदि का रूप बुनना । १०. संघात्य-अनेक जोडों से बनाया हुआ वस्त्र, कंचकी आदि । ११. छेद्य-पत्रछेद्य आदि । १४४. भावपद के दो प्रकार हैं-अपराधपद तथा नो-अपराधपद । नो-अपराधपद दो प्रकार का है-मातृकापद (त्रिपदी) और नो-मातृकापद । १४५. नो-मातृकापद के भी दो प्रकार हैं-प्रथित और प्रकीर्णक । ग्रथितपद चार प्रकार का है तथा प्रकीर्णक के अनेक प्रकार हैं । १४६. अथितपद के चार प्रकार ये हैं-गद्य, पद्य, गेय और पोर्ण । इनके लक्षणों को जानने वाले लक्षण कवि इन सबको त्रिसमुस्थान अर्थात् धर्म, अर्थ और काम-इन तीन विषयों से उत्पन्न बतलाते हैं। १४७. जो मधुर, सहेतुक, क्रमशः प्रथित, चरणरहित, विरामसंयुक्त तथा अन्त में अपरिमित होता है, वह गद्य काव्य कहलाता है । १४८. पद्य तीन प्रकार का होता है-सम, अर्धसम और विषम । 'सम' का तात्पर्य है-. पादों में सम तथा अक्षरों में सम। कुछ कहते हैं - सम का अर्थ है-चारों पादों में समान अक्षर हों। अर्धसम का अर्थ है-पहले तथा तीसरे तथा दूसरे और चौथे पाद में समान अक्षर हों। विषम का अर्थ है--सभी पादों में अक्षरों की संख्या विषम हो । ऐसा विधिज्ञ-छन्दशास्त्र के ज्ञाता कहते हैं। १४९. गीत संज्ञक गेयकाव्य के पांच प्रकार हैं १.तंत्रीसम-जो वीणा आदि तंत्री शब्दों के साथ गाया जाता है। २. तालसम-जो ताल के साथ गाया जाता है। ३. वर्णसम-जो निषाद आदि वर्गों के साथ गाया जाता है। ४, ग्रहसम -जो उरक्षेप के साथ गाया जाता है। ५. लयसम-जो तंत्री की विशेष ध्वनि के साथ गाया जाता है।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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