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________________ नियुक्तिपंचक १३०. सब जीवों में जिसके लिए कोई प्रिम या अप्रिय नहीं होता, वही 'समन'-समान मन झाला होता है । पर शमा का दूसरा पर्यायवाची नाम है । १३१. इसलिए जो सुभान वाला होता है, भाव से पापमन वाला नहीं होता, स्वजन-परजन तथा मान और अपमान में सम होता है, वह 'समण' है। १३२. जो मुनि सर्प के समान (एक दृष्टि), पर्वत के समान (कष्टों में अप्रपित), अग्नि के समान (अभेददृष्टि), सागर के समान (गंभीर और ज्ञान रत्नों से युक्त), नभस्तल के समान (स्वावलंबी), वृक्ष के समान (मान-अपमान में सम), भ्रमर के समान (अनियतवृत्ति), मृग के समान (अप्रमत्त), पृथ्वी के समान (सहिष्ण), कमल के समान (निलेप), सूर्य के समान (तेजस्वी) और पवन के समान अप्रतिबद्धविहारी होता है, बही वास्तविक श्रमण है। १३३ मुनि को विष की तरह सर्व रसानुपाती, तिनिश की तरह विनम्र, पवन की तरह अप्रतिबद्ध, बंजुल की तरह विषपातक, कणेर की तरह स्पष्ट, उत्पल की तरह सुगंधित, भ्रमर की भांति अनियतवृत्ति, चूहे की भांति उपयुक्त देश-कालचारी परिवर्तन करने वाला, कुक्कुट की भांति संबिभागी और कांच की तरह निर्मल होना चाहिए । १३४,१३५. प्रवजित, अनगार, पाषण्ड, चरक, तापस, मिक्ष, परिव्राजक, श्रमण, निग्रंथ, संयत, मुक्त, तीर्ण, वामी, द्रव्य, मुनि, क्षान्त, दान्त, विरत, रुक्ष और तीरार्थी-ये श्रमण के पर्यायवाचक शब्द है। १३६. पूर्व शब्द के तेरह निक्षेप हैं-१. नाम २ स्थापना ३. द्रव्य ८. क्षेत्र ५. काल ६. दिशा ७. तापक्षेत्र ८. प्रज्ञापक ९. पूर्व १७. वस्तु ११. प्राभूत १२. अतिप्राभूत और १३. भाव । १३७, काम शब्द के चार निक्षेप हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । १३५. शब्द, रस, रूप, गंध, स्पर्श और मोहोदय में निमित्त बनने वाले पदार्थ द्रव्यकाम है। भावकाम के दो प्रकार हैं-इच्छाकाम और मदनकाम। १३९ इच्छा प्रशस्त भी होती है और अप्रशस्त भी (प्रशस्त इच्छा है। धर्मेच्छा, मोक्षेच्छा आदि । अप्रशस्त इच्छा है-युद्धेच्छा, राज्येच्छा आदि) । मदनकाम का अर्थ है वेद का विपाकोदय । प्रस्तुत प्रसंग में मदनकाम का अधिकार है, धीरपुरुष उसका निरुक्त बतलाते हैं। १४०. विषयजन्य सुखों में आसक्त, कामराग में प्रतिबद्ध तथा अज्ञानी व्यक्तियों को धर्म से उत्क्रांत-दूर कर देने के कारण ये 'काम' कहलाते हैं । १४१. बुद्धिमान व्यक्ति 'काम' का अपर नाम रोग बतलाते हैं। क्योंकि जो व्यक्ति काम की अभिलाषा करता है, वह वास्तव में रोग की अभिलाषा करता है । १४२. पद के मुख्य रूप से चार प्रकार है-नामपद, स्थापनापद, द्रव्यपद और भावपद । प्रत्येक पद अनेक प्रकार का है, यह ज्ञातव्य है।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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