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________________ कालिक नियुक्ति ९७|१. जइ पराई कीस पुणो, जं काले पुप्फफलं १८. कुमार्ग पुष्कति पादवगणा, सव्वं कालं न देंति पुप्फफलं । ददति गुरुराह अत एव ' ॥ उपयम्मि आगए संते 1 फलं च कालेण बंधति || ९९. किन्तु गिही रंधंती, समणाणं 'कारणा महासमयं । मा समणा भगवंतो, किलामएज्जा अणाहारा ॥ ९९।१. समणऽणुकंपनिमित्तं पुष्णनिमित्तं च गिमिवासी उ कोई भणेज्ज पागं, करंति सो भण्णइ न जम्हा' || १००. कंतारे दुब्भिक्खे, आयंके वा महइ" समुप्पन्ने । रति समणसुविहिया, सव्वाहारं न भुंजंति ।। १०१. अह कीस पुण गिहत्या, रति आदरतरेण' रंवंति । समणेहि सुविहिएहि, चव्विहाहारविरहि । १०२. अस्थि बहु गाम-नगरा, समणा जत्थन उर्वेति नवसंति । तत्थ वि रंधंति गिही, पंगती एसा गिहत्थाणं ।। १०३. पती एस गिहीणं, जं गिहिणो गाम-नगर-निगमेसुं । रंधति 'अपणो परियणस्स' 'अट्ठाए कालेणं " ॥ १०४. 'एत्थ समणा सुविहिया", परकड - परनिट्ठियं विगयधूमं । आहारं एसंती", जोगाणं साहट्टाए । ་་ १. ९७११ गाया हाटी में निगा के क्रम में प्रकाशित है। दोनों चूर्णियों में इस गाथा का संकेत न होने पर भी भावार्थ मिलता है। यह गाथा स्पष्ट रूप से भाष्य की प्रतीत होती है क्योंकि इसमें ९७ की गाथा का ही स्पष्टीकरण है तथा इस गाथा के उत्तरार्ध में स्पष्ट रूप से कहा है कि 'गुरुराह अत एव' । भाष्यकार ही निर्मुक्तिकार के बारे में ऐसा उल्लेख कर सकते हैं । (देखें परि. गा. ११) १ २. कारणे मुविहिया (जिनू), कारणा सुवि- ११. एत्य य समणसुवि हियाणं (अबू) | बस्सी (हारा) | ३. यह गाया टीका में निगा के क्रम में व्याख्यात है। मुनि पुण्यविजयजी ने अचू में इसे निगा ४. ५. ६. ७. के क्रम में स्वीकृत नहीं किया है। यह गाथा भाष्य की होनी चाहिए क्योंकि यह व्याख्या रूप है । (देखें परि० १० १२) दुर्भिक्ले ( जितू ) । महया ( अ, ब ), महई (अच्) । आयात ( रा० ) । इस गाथा का जिचू मे कोई उल्लेख नहीं है । देसा (अच्) । ९. परियणस्स अप्पणी ( रा ) । १०. कालेण अट्ठाए (अ,ब,रा) । ३१ १२. एसति (हा ) । O ( अचू ), तत्थ समणा
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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