SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियुक्तिपंचक ९५।२. कि दुभिक्खं जायइ ?, जइ एवं अह' भवे दुरिट्ठतु। कि जायइ सम्बत्था, दुभिक्खं अह भवे इदो ?।। ९५॥३. वासइ 'तो कि विग्धं, निम्घायाइहि जायए तस्स । अह वासइ उउसमए, न वासई तो तणट्ठाए' ।। ९६. किं च दुमा पुष्फती, भमराणं कारणा अहासमयं । मा भमर-महुगरिंगणा', किलामएज्जा अणाहारा ।। ९६११. कस्सइ बुद्धी एसा, वित्ती उवकप्पिया पयावइणा । सत्ताणं तेण दुमा, पुप्फती महुयरिंगणट्ठा ।। ९६।२. तं न भवइ जेण दुमा, नामागोयस्स पुवविहियस्स । उदएणं पुष्फफलं, निवत्तयंती' इमं चऽन्न ।। ९७. अस्थि बहू वणसंडा, भमरा जत्थ न उवेंति न वसंति । तत्थ वि पुप्फति दुमा, पगती एसा दुमगणाणं ।। १. इह (रा)। २. कि तो (रा)। ३. माथा ९५ के बाद की तीन गाथाओं का दोनों चणियों में कोई संकेत नहीं है किन्तु अचू में 'एत्य चोदेति' तथा जिम में 'एत्यंतरे सीसी पोदेई' कहकर इन तीनों गाथाओं का भावार्थ दिया है। इन तीनों गाथाओं में ९५वीं गाथा का ही विस्तार तथा व्याख्या है, अतः ये भाष्यगाथाएं प्रतीत होती हैं। मुद्रित टीका की प्रति में ये निर्यक्तिगाथा के क्रम में प्रकाशित है, किन्तु हरिभद्र ने अपनी ब्याख्या में इन गाथाओं के बारे में कोई संकेत नहीं दिया है। हमने इनको भाष्यगाथा के रूप में स्त्रीकत किया है। इन गाथाओं को निगा के क्रम में न रखें तो भी चालू विषयक्रम में कोई अंतर नहीं आता। विषय की दृष्टि से ९५ की गाथा ९६ से सीधी जुड़ती है। (देखें परि० १ ४. किंतु (जिचू)। ५. ० फेती (अचू), पुम्फसि (हा)। ६. मड्डयर० (अ, ब) ७. निव्वयंति (रा)। ८. ९६/१-२ इन दोनों गाथाओं को संक्षिप्त व्याख्या चति में मिलती है किंत गाथाओं का संकेत नहीं है। टीका में यह निगा के क्रम में व्याख्यात है। किन्तु मह गाथा भाष्य की होनी चाहिए। (देखें टिप्पण मा. ९५॥३)। माथाएं रा प्रति में नहीं मिलती है। ये दोनों गाथाएं व्याख्यात्मक सी प्रतीत होती हैं। इन दोनों को निगा के क्रम में न रखने से भी चालू विषयक्रम में कोई अंतर नहीं पड़ता। ९६ की गाथा विषयवस्तु की दृष्टि से ९७ से सीधी जुड़ती है । (देखें परि १ गा. ९.१०) ९.जं च (हा)।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy