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________________ १५८, १६७. १७३. विषयानुक्रम १२३. न्याय के प्रतिझा आदि दस अवयवों का १५७/१. तीर्थ के प्रभावक फोन ? नामोल्लेख । शानाचार के आठ भेदों का उल्लेख । १२३/१-११. प्रतिज्ञा मादि दस अवयवों की व्याख्या । चारिवाचार के आठ भेदों का उल्लेख । १२४. प्रथम अध्ययन की नियुक्ति का उपसंहार। १६७. तप-आचार के बारह भेदों का उल्लेख । १२५, नय का स्वरूप । वीर्याचार का स्वरूप । १२६. नयों की बहुविश्व वक्तव्यता। कथा के भेदों का उल्लेख । अर्थकथा का स्मरूप। दूसरा अध्ययन अर्थकथा से सम्बन्धित कथा का १२७. श्रामण्य और पूर्वक शब्द के निक्षेप । १६४. निर्देश। १२८, द्रव्य और भाय श्रमण का स्वरूप । कामकथा का स्वरूप । १२९-३१. श्रमण का स्वरूप । धर्मकथा के आक्षेपणी आदि चार भेद । १३२,१३३. श्रमण को सर्प, गिरि आदि की विविध आक्षेपणी कथा वे भेन्छ । उपमाएं। १६८. आक्षेपणी कथा का स्वरूप । १३४,१३५. थमण शब्द के एकार्थक । विपणी का कद और स्वरूप । पूर्व शब्द के चौदह निक्षेप । संवेजनी कथा के प्रकार । १३७. काम शब्द के निक्षेप । संवेजनी कथा का स्वरूप । १३८. द्रव्य काम का स्वरूप एवं भाव काम के निर्वेदनी कथा का स्वरूप । भेद । निवेदनी कथा का रस । १३९. इच्छाकाम और मदनकाम का स्वरूप । संवेजनी और निवेदनी कथा की फलति । १४.. धर्म से विध्युति का हेतु-कामभाव । १७७,१७८. शिष्यों को कथा कहने का क्रम और उसका काम की प्रार्थना : रोग को निमंत्रण। फल। १४२. पद शब्द के निक्षेप । १४३-४५. मिश्रकथा का स्वरूप । १७९. पद के भेद-प्रभेदों का उल्लेख । विकथा के प्रकार। १४६. १८०. प्रथित पद के चार भेद। गध काध्य का स्वरूप । १८१. प्ररूपक के आधार पर कथा का अकथा पद्य के भेदों का उल्लेख । और विकथा होना। मेय के भेद-प्रभेद। १८२. अकथा का स्वरूप । १५०. चूर्णपद का स्वरूप। १८३. कथा का स्वरूप । इंद्रिय-विषय आदि अपराध पदों का १४. बिकथा का स्वरूप उल्लेख। १८५-८७. श्रमण के लिए अकथनीय और कथनीय १५१/१. अठारह हजार फीलांगों का निर्देश । कथा का स्वरूप । १५२. अठारह हजार शीलांगों की निष्पत्ति । १८.. क्षेत्र, काल, पुरुष और सामर्थ्य के आधार तीसरा अध्ययन पर कथा कहने का निर्देश । महद् और क्षुल्लक शब्द के निक्षेप । चौथा अध्ययन १५४. आचार शब्द के निक्षेप । ११५. द्रव्याचार का स्वरूप । १८९. चतुर्थ अध्ययन के अधिकारों का उल्लेख । भावाचार के भेदों का कथन । १९०. छह, जीव और निकाय इन शब्दों के दर्शनाचार के आठ भेदों का उल्लेख। निक्षेप कथन की प्रतिज्ञा ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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