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निर्युक्तिपंचक
(द) यह लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर से प्राप्त है। इसकी क्रमांक संख्या १४४४३ है । यह २५.८ सेमी. लम्बी तथा १०.५ सेमी चौड़ी है। अंत में ब प्रति में उल्लिखित पद्मोपमं... संस्कृत श्लोक लिखा हुआ है तथा उसके बाद अंत में "पूज्य वाचनाचार्यश्रेणिशिरोमणि हर्षप्रमोदर्गाणशिष्य आनन्दप्रमोदगणिना" ऐसा उल्लेख मिलता है।
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(क) यह भी लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर, अहमदाबाद से प्राप्त है । इसकी क्रमांक संख्या २९०९९ है । यह २५.५ सेमी. लम्बी तथा १०.९ सेमी चौड़ी है। इसमें कुल ४४ पत्र हैं । ३९ पत्र से ४४ पत्र तक नियुक्ति लिखी हुई है। प्रति के दोनों ओर हासिया तथा बीच में खाली स्थान है। अंत में "ग्रं २०८ सूयगडनिज्जुती सम्मत्ता।" का उल्लेख है तथा ब प्रति वाला पद्मोपम ......संस्कृत श्लोक पूरा लिखा हुआ है। इसकी स्पाही बहुत गहरी है अतः अक्षर पढने में असुविधा रहती है।
(चू.) सूत्रकृतांग चूर्णि प्राकृत ग्रंथ परिषद् से प्रकाशित है। इसके संपादक मुनि पुण्यविजयजी हैं। इसमें नियुक्तिगाथागत पाठान्तर को 'चू.' संकेत निर्दिष्ट किया गया है।
(चूपा.) सूत्रकृतांग चूर्णि के अंतर्गत आए हुए पाठान्तर ।
(टी.) मोतीलाल बनारसीदास द्वारा प्रकाशित आचार्य शीलांक कृत सूत्रकृतांग टीका के अंतर्गत नियुक्ति - गाथा के पाठान्तर । यह मुनि जम्बूविजयजी द्वारा संपादित है।
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( टीपा ) शीलांकाचार्य की टीका के अंतर्गत उल्लिखित पाठान्तर ।
दशाश्रुतस्कंध निर्मुक्ति
(अ) यह महिमा ज्ञान भक्ति भंडार से उपलब्ध है। इस प्रति में मूल नियुक्ति के साथ अन्य अनेक गाथाएं भी लिखी हुई हैं। वैसे भी दशाश्रुतस्कंधनिर्मुक्ति की किसी भी प्रति में गाथा-संख्या की एकरूपता नहीं है।
(ब) यह लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर से प्राप्त है। यह २७ सेमी लम्बी और १२.३ सेमी. चौड़ी है। इसमें मूलपाठ, नियुक्ति और चूर्णि सम्मिलित है। इसमें कुल १०६ पत्र हैं । ४६ ४९ पत्र तक दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति लिखी हुई है। इसमें पूरी निर्युक्ति नहीं है। प्रारम्भ में १ से ११ गाथाएं हैं। उसके बाद पज्जोसवणा की प्रारम्भिक सात गाथाओं को छोड़कर अंत तक पूरी गाथाएं हैं। यह प्रति बहुत नवीन है अतः अशुद्धियां बहुत हैं। अनेक स्थलों पर पाठान्तर नहीं लिए हैं । अधिकांश ह्रस्व इकार के स्थान पर दीर्घ ईकार है। इसकी क्रमांक संख्या २३१६७ है। अंत में "आमारदसाणं निज्जुती" मात्र 'इतना ही उल्लेख है ।
(बी) यह राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, बीकानेर की प्रात ह । इसको क्रमांक संख्या १३०३० है। प्रति में पहले चूर्णि तथा बाद में नियुक्ति है। नियुक्ति ४७ वें पत्र से प्रारम्भ होकर ५१ वें पत्र में समाप्त होती है। प्रति के अंत में केवल "आयारदसाणं निज्जुत्ती सम्मत्ता" का उल्लेख है। लेखक या समय का संकेत नहीं है। यह प्रति ज्यादा प्राचीन नहीं है ।
(ला) यह लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर की प्रति है । इसका क्रमांक २३१६७ है । प्रति साफ-सुथरी है। इसमें आयारदसा का मूलपाठ नियुक्ति और चूर्णि—ये तीनों लिखे हुए हैं। निर्मुक्ति ७९ के दूसरे पत्र से प्रारम्भ होती है तथा ८३ के प्रथम पत्र में समाप्त हो जाती है । यह प्रति अनुमानत: