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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण संस्कृति, इतिहास और विज्ञान आदि का वर्णन किया है। यहां हम नियुक्ति एवं उनके व्याख्या- साहित्य के आधार पर इन विषयों की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं। नियुक्तिकार के समय धर्म का सर्वोपरि महत्त्व था। उसे उत्कृष्ट मंगल के रूप में स्वीकार किया जाता था। धर्म के नाम पर लोगों को भ्रमित भी किया जाता था। परिव्राजक लोग धार्मिक सिद्धांतों के नाम पर लोगों को ठगा करते थे। अंधविश्वास के आधार पर देवी-देवताओं की अंधपूजा की जाती थी। परिस्थितिवश मलोत्सर्ग पर डाले गए फूलों को देखकर हिंगुशिव की उत्पत्ति इसका प्रत्यक्ष निदर्शन है। कार्य विशेष की पूर्ति हेतु लोग मनुष्यों की बलि भी देते थे। कुछ संन्यासी या भिक्षु सप्त व्यसनों से आक्रान्त होते थे। ब्राह्मण यदि किसी भी को रोषपूर्तक या निरतः मार देता तो उसे प्राणदंड तक का प्रायश्चित्त दिया जाता था। साधु-साध्वियों को तत्त्व विषयक शंका होने पर श्रावक तथा राजा आदि उनको प्रतिबोध एवं प्रेरणा देते थे। यदि वाचना अधूरी रह जाती तो आगाढ योग में प्रतिपन्न शिष्यों का अध्यापन पूरा कराने हेतु कभी-कभी दिवंगत होकर भी आचार्य पुन: दिव्य प्रभाव से उस शरीर में प्रदेश कर वाफ्ना पूर्ण करते थे। शक्ति प्राप्त करने अथवा शंका-समाधान हेतु संघ आचार्य सहित देवता का कायोत्सर्ग करता था, जैसे—आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र ने गोष्ठामाहिल द्वार। शंका उपस्थित किए जाने पर कायोत्सर्ग का प्रयोग कर देवता का आह्वान किया। साधु-संन्यासी एवं परिव्राजक धार्मिक वाद-विवादों में वृश्चिक, सर्प आदि विद्याओं तथा मायूरी, नाकुली आदि प्रतिपक्ष विद्याओं का प्रयोग करते थे। साधु लोग कभी-कभी ऐसी विद्याओं का प्रयोग भी कर लेते थे, जिससे दूसरों का अनिष्ट हो जाता था। चोर उन्नामिनी-अवनामिनी विद्या में प्रवीण होते थे। चोर आदि भी उपदेश देने पर सरलता से प्रतिबुद्ध होकर प्रजित हो जाते थे, जैसे- कपिल मुनि के द्वारा प्रतिबोध देने पर बलभद्र आदि पांच सौ चोर प्रतिबुद्ध हो गए। छोटे से निमित्त को पाकर राजा लोग प्रतिबुद्ध हो जाते थे, जैसे- वृद्ध बैल को देखकर करकंडु, इंद्रकेतु की दुर्दशा देखकर दुर्मुख, कंकण की आवाज सुनकर नमि राजर्षि तथा आम्रवृक्ष की श्रीहीनता को देखकर गांधार राजा नम्गति प्रतिबुद्ध हो गए।२ अनशन से पूर्व बारह वर्ष की संलेखना का बहुत सुंदर कम आचारांगनियुक्ति में प्रतिपादित है। प्रसंगवश नियुक्तिकार ने दैदिक कियाकाण्डी नान्यताओं का भी हेतु-पुरस्सर खंडन किया है। अग्नि में घी की आहूति डालने से सूर्यदेवता प्रसन्न होकर वर्षा करते हैं। इस मान्यता का खंडन करते हुए नियुक्तिकार कहते हैं कि होम करने से वर्षा होती है तो फिर दुर्भिक्ष क्यों होता है? यदि यह कहा जाए कि दुरिष्ट (बुरा नक्षत्र) या अविधिपूर्वक होम करने से दुर्भिक्ष होता है तो फिर जहां दुरिष्ट या अविधि से होम किया जाए वहीं दुर्भिक्ष होना चाहिए, सब जगह दुर्भिक्ष क्यों होता है? वर्षा का कारण १. दशनि ८८, ८४. देखें कथा सं. २२ पृ. ४८३। २. दशनि ६३। ३. दशनि ७९ ४. दशनि ७९। ५. दनि १०५। ६. उनि १७२/२-५। ७. उनि १७२/४। ८. आचू च ६१: पसत्थदेवबले दुबलियपूसमित्तप्पमुहेग संघेण देवयाए बलनिमित्तं का उस्सम्मो को। ९. उनि १७२/८.९। १०. उनि ११९ । ११ उनि २५१ १२. उनि २५८। १३. आनि २८८-९४ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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