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________________ ११० नियुक्तिपंचक पहचान से अपने मार्ग पर आगे बढ़ता जाता था। दिग्भ्रम न हो इस दृष्टि से ये मार्ग विशेष रूप से मरप्रदेश में बनाए जाते थे. जहां बालू के टीलों की अधिकता होती थी। १०. अजमार्ग- इतना संकरा पथ, जिसमें केवल अज (बकरी) या बछडे के चलने जितनी पगडंडी मात्र होती थी। यह मार्ग विशेषत: पहाड़ों पर होता था, जहां बकरों या भेडों पर यातायात किया जाता था। इसे मेंढपथ भी कहा जाता था। इन मार्गों पर दो व्यक्ति एक साथ नहीं चल सकते थे। टीकाकार के अनुसार चारुदत्त इसी मार्ग से स्वर्णभूमि पहुँना चूर्णिया ने इसे लोहे रहे जटिल पथ माना है. यह पध स्वर्णभूमि में था। ११. पक्षिपथ- भारुण्ड आदि विशालकाय पक्षियों के सहारे होने वाला आकाशमार्गीय यातायात। यह मार्ग सर्वसुलभ नहीं था। ऐसा संभव लगता है कि मांत्रिक या तांत्रिक लोग इन विशालकाय पक्षियों का उपयोग वाहन के रूप में करते थे। आज भी शतुर्मुर्ग का वाहन के रूप में उपयोग किया जाता है। पाणिनी का हंसपथ, महानिद्देस का शकुनपथ और कालिदास का खगपथ और सुरपय इसी पक्षिपथ के वाचक हैं। १२, छत्रमार्ग- ऐसा मार्ग, जहां छत्र के बिना आना-जाना निरापद नहीं होता था। संभव है यह। जंगल का मार्ग हो, जहां हिंस्र पशुओं का भय रहता हो। पशु छत्ते के डर से इधर-उधर भाग जाते अथवा धूप से रक्षा के लिए इनका उपयोग किया जाता था। १३. जलमार्ग जहाज, नौका आदि से यातायात करने का मार्ग । इसे वारिपथ भी कहा जाता था। १४. आकाशमार्ग- चारणलब्धि सम्पन्न मुनियों, विद्याधरों तथा मंत्रविदों के आने-जाने का मार्ग । इसे दिवपय' भी कहा जाता था। प्राचीनकाल में रथ के लिए विशिष्ट मार्ग बनाए जाते थे, जो चौड़े और समतल होते थे। शकट संकरे मार्ग पर भी चल सकते थे। उत्पथ पर तीव्र गति से शकट चलाने पर वे भान हो जाते थे। जल को पार करने हेतु भस्त्रा का प्रयोग किया जाता था। चमड़े को सीकर उसमें हवा भर दी जाती थी, जो इनलप के चक्रों के समान पानी पर तैरती थी। भस्त्रासे रास्ता तय करने वाले को भास्त्रिक कहते थे। धार्मिक संस्कृति आगम-साहित्य को पढ़ने से तत्कालीन देश, काल और संस्कृति का ज्ञान हो जाता है क्योंकि वे विस्तृत शैली में लिखे गए हैं। नियुक्तिकार का मूल लक्ष्य सूत्र में आए पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना था अत: उन्होंने सलक्ष्य इस विषय में कोई रुचि नहीं ली किन्तु प्रसंगवश धर्म, समाज, राजनीति, १ सूटी पु. १३५: कीनकमार्ग यत्र आनुकोको मरका देविषये कीलकाभिज्ञानेन गन्यते। २ सूटी पृ १३६ ५. ही ५. १३१ जलमार्ग पत्र नवदिना सभ्यते। ६ सूच१५ १९४; आगासमग्गो चारण-विज्ञाहराणं । ७. शस्चू ५ ५२। ८ महाभाष्य ४/४/१६ । ४ सूटी पृ. १३१: छत्रमार्गो यत्र छन्त्रमन्तरेण गंतुं न शक्यते ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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