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________________ १३६ नियुक्ति पंचक ठहराव का आधा समय तिथि के प्रारम्भिक काल में जोड़ने या समाप्ति काल में से घटाने पर करण कः समाप्ति काल आ जाता है। जिन तिथियों में विष्टिकरण होता है, उन तिथियों को भद्रा तिथि कहा जाता है । भद्रातिथि में शुभकार्य वर्जित रहते हैं। विष्टि के अतिरिक्त शेष करण शुभ माने जाते हैं। ध्रुवकरण शुभ नहीं माने जाते । जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति में कौन सी तिथि को कौन सा करण होता है, इसका उल्लेख मिलता है। उसका चार्ट इस प्रकार हैं कृष्णपक्ष तिथि पूर्वार्द्धकरण उत्तरार्धकरण १. कौलव २ गर विष्टि बालव स्त्रीविलोकन वणिज ३. mito wr ४. ५. ६. ७. ८ ९. १०. ११. १२. बालव स्त्री विलोकन वणिज बव कौलव गर विष्टि बालव स्त्रीविलोकन वणिज बव कौलव १३. गर १४. विष्टि १५. चतुष्पाद बव कौलव गर विष्टि बालव १. जंबू ७/१२५ । २. दशनि १४६ । स्त्रीविलोकन वणिज शकुनि नाग तिथि २ g wr 6. ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ पूर्वार्द्धकरण किंस्तुघ्न बालव स्त्रीविलोकन • वणिज जन कौलव गर विष्टि बालच शुक्लपक्ष स्त्रीविलोकन वणिज बन कौलव गर टिष्टि उत्तरार्धकरण बव कौलव गर विष्टि बालव स्त्रीविलोकन वणिज बन कौलव गर विष्टि बालव स्त्रीविलोकन वणिज नव नियुक्तिकार ने यह प्रसंग ज्योतिष शास्त्र से प्रसंगवश लिया है। यद्यपि उन्होंने करण की विस्तृत व्याख्या नहीं की है लेकिन जितना वर्णन है, वह ज्योतिष विद्या की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । काव्य निर्युक्तिकार को काव्य - साहित्य का भी गहरा ज्ञान था। समकालीन अनेक काव्य ग्रंथ उनके दृष्टिपथ से गुजरे, ऐसा प्रतीत होता है। 'पद' का वर्णन करते हुए प्रसंगवश उन्होंने काव्य के अनेक तत्त्वों पर विस्तृत प्रकाश डाला है। निर्मुक्तिकार ने काव्य के अंतर्गत प्रति पद के चार भेद किए हैं— १. गद्यकाव्य २. मद्यकाव्य ३. रोयकाव्य ४. चौर्णकाव्य । ठाणं सूत्र में काव्य के चार भेदों में चौर्ण के स्थान पर कथम काव्य नाम मिलता है। कथ्य काव्य कथात्मक होता है। मुख्यतः काव्य के दो ही प्रकार होते हैं-गद्य और पद्य । आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार चौर्ण और गेय काव्य के स्वतंत्र प्रकार नहीं हैं अतः ये गद्य के ही अवान्तर भेद हैं। फिर भी स्वरूप की विशिष्टता ३ ठाणं ४ / ६४४
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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