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________________ कर्म निरूपण छाया:-न्यथा चाण्डप्रभवा बलाका, अण्डु बलाकाप्रभवं यथा च । एवमेव मोहायतनं खलु तृष्णा: मोहं च तृष्णायतनं वदन्ति ।।२६।। अश्ययार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (जहा य) जैसे (अंडप्पभवा बलागा) अण्डा से बगुली उत्पन्न हुई (य) और (जहा) जैसे (अंडं बलागणभवं) बगुली से अण्डा उत्पन्न हुआ (एमेय) इसी तरह (ख) निश्चय करके (मोहाय यणं) मोह का स्थान तण्टा) तृष्णा (च) और (तष्हाययगं) ताणा का स्थान (मोह) मोह है, एसा (वयंति) ज्ञानी जन कहते हैं। ___ भावार्थ:-हे गौतम ! जैसे अण्डे से बगुली (मादा नगला) उत्पन्न होती है और बगुसी से अण्डा पैदा होता है। इसी तरह से मोह कर्म से तृष्णा उत्पन्न होती है और तृष्णा से मोह उत्पन्न होता है । हे गौतम ! रोमा ज्ञानीजन कहते हैं । मूल:- रागो य दोसो वि य कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाईमरणं वयंति ।।२७ ।। छाया:-रागश्च द्वेषोऽपि च कर्मबीज, कर्म च मोहप्रभवं वदन्ति । कर्म च जातिमरणयोर्मूलं, दु:खं च जातिमरणं वदन्ति ।।२७।। अन्वयार्य:-हे इन्द्र भूति ! (रागो) राग (य) और (दोसो वि य) दोष ये दोनों (कम्मबीर्य) कर्म उत्पन्न करने में कारणभूत है (च) और (कम्म) कर्म (मोहपमवं) मोह से उत्पन्न होते हैं। ऐसा (वयं ति) जानी जन कहते है । (च) और (जाईमरणस्स) जन्म मरण का (मूलं) मूल कारण (कम्म) कर्म है (घ) और (जाईमरणं) जन्म-मरण ही (दुक्खं) दुःण्ड है, ऐसा (अयंति) ज्ञानीजन कहते हैं ।
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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