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________________ निर्धन्य-प्रवचन भावार्थ:-हे गौतम बे राग और ष कम से उत्पन्न होते हैं और फर्म मोह से पैदा होते हैं । यही कर्म जन्म-मरण का मूल कारण है और जन्म-मरण ही दुःख है, ऐसा ज्ञानीजन कहते हैं। तात्पर्य यह है कि राग-द्वेष और कर्म में परस्पर द्विमुख कार्यकारण भाव है। जैसे बीज, वृक्ष का कारण और कार्य दोनों है तथा वृक्ष भी बीज का कार्य और कारण है, उसी प्रकार कर्म राग-द्वेष का कार्य भी है और कारण मी; सथा राग-द्वेष कर्म का कार्य भी है और कारण भी है। मूलः-दुक्खं ह्यं जस्स न होइ मोहो, मोहो हो जस्स न होइ तण्हा। तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हओ जस्स न किंचणाई ॥२८॥ छाया:-दुःखं हतं यस्य न भवति मोहः, ___ मोहो हतो यस्य न भवति तृष्णा । तृष्णा हता यस्य न भवति लोभः, लोभो हतो यस्य न किञ्चन ।।२।। अन्वयार्षः-(जस्स) जिसने (दुक्ख) दुःख को (यं) नाश कर दिया है उसे (मोहो) मोह (न) नहीं (होइ) होता है और (जस्स) जिसने (मोहो) मोह (हमओ) नष्ट कर दिया है उसे (तण्हा) तृष्णा (न) नहीं (होइ) होती । (जस्स) जिसने (तोहा) तृष्णा (हया) नष्ट करदी उसे (लोहो) सोम (न) नहीं (होइ) होता, और (जस्स) जिसने (लोहो) लोम (हओ) नष्ट कर दिया उसके (किंचणाई) ममत्व (न) नहीं रहना । । ___ भावार्यः-हे गौतम ! जिसने दुःख रूपी भयंकर सागर फा पार पा लिया है वह मोह के बन्धन में नहीं पड़ता। जिसने मोह का समूल उन्मूलन कर दिया है उसे तष्णा नहीं सता सकती। जिसने तुष्णा का त्याग कर दिया है उसमें लोम की वासना कायम नहीं रह सकती। जो पाप के बाप लोम से मुक्त हो गया, उसके समी कुछ मानों नष्ट हो गया । निर्लोभता के कारण वह अपने को अकिंचन समझने लगता है।
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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