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निर्मश्य-प्रवचन
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मूल:- हेट्टिमा हेट्टिमा चेव, हेट्टिमा मज्झिमा तहा । हेट्टिमा उवरिमा चेव, मज्झिमा हेट्टिमा तहा ॥२३॥ चेब,
मज्झिमा मज्झिमा मज्झिमा उवरिमा
उवरिमा हेट्टिमा चेव, उवरिमा मज्झिमा
तह ||२४||
उवरिमा उबरिमा चेव, इय गेविज्जगा सुरा । विजया वैजयंता य जयंता अपराजिया ||२५||
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सव्वत्थसिद्धगा चैव, पंचाणुत्तरा सुरा । इइ बेमाणिया, एएऽरोगहा एवमायओ ॥ २६ ॥
छाया:- अधस्तनाधस्तनाश्चैव,
अधस्तनोपरितनाश्चैव
मध्यमामध्यमाश्चंच,
उपरितनाऽघस्तनाश्चैव उपरितनमध्यम | स्तथा ॥२४॥
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सर्वार्थसिद्धकाश्चैव, इति वैमानिका एते,
तहा ।
उपरितनोपरितनाश्चैव इति मैवेयकाः सुरा ।
विजया वैजयन्ताश्च
"
अश्वस्तनामध्यमास्तथा ।
मध्यमाऽधस्तनास्तथा ||२३||
मध्यमोपरितनास्तथा ।
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जयन्ता अपराजिताः ||२५||
पंचधानुत्तराः सुराः ।
अनेकधा
एवमाद्यः ||२६||
अभ्ययार्थः – हे इन्द्रभूति 1 (हट्टिमा हेट्टिमा) नीचे की त्रिक का नीचे वाला (चव ) और ( हिडिमा मज्झिमा) नीचे की त्रिक का बीच वाला | ( तहा) तथा (हेमा उवरिमा ) नीचे की त्रिक का ऊपर वाला ( चेथ) और (मसिमाहेठमा ) बीचको त्रिक का नीचे वाला (सहा) तथा ( मज्झिमा मज्झिमा) बीच की त्रिक का बीच वाला (वेव) और (मज्झिमा उवरिमा ) बीच की त्रिक का ऊपर वाला (सहा) तथा ( उवरिमाहेद्विमा) ऊपर की त्रिक का नीचे वाला