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________________ नरक-स्वर्ग निरूपण छाया: – कल्पोपगा द्वादशधा, सौधर्मेशानगास्तथा । सनत्कुमारा माहेन्द्राः, ब्रह्मलोकाश्च लान्तका ॥२०॥ महाशुकाः सहस्राराः मानताः प्राणतास्तथा । आरणा अच्युताश्चैव इति कल्पोपगाः सुरा ||२१|| २१५ J अन्वयार्थ :- हे इन्द्रभूति ! (कप्पोवगा) कल्पोत्पश्न देव (बारसहा ) बारह प्रकार के हैं (सोहम्मीसाणमा) सुबमं ईशान ( तहा) तथा ( सणकुमार) सतरकुमार (माहिदा ) महेन्द्र (बम्मलोगा) ब्रह्म (य) और (लतगा) लांतक ( महासुका) महासु (सहस्सारा) सहस्रा ()()() ( आरणा) आरण (चेक) और (अडवूया ) अच्युत देव लोक (६) ये हैं और इन्हीं के नामों पर से (कप्पोषगा) कल्पोत्पन्न ( सुरा) देवों के नाम भी हैं । भावार्थ : हे गौतम! कल्पोत्पान देवों के बारह भेद है और वे यों है(१) सुधर्म (२) ईशान ( ३ ) सनत्कुमार (४) महेन्द्र ( ५ ) ब्रह्म ( ६ ) लांतक (७) महाशुक ( ८ ) सहस्रार ( ६ ) आणत (१०) प्राणत ( ११ ) आरण और (१२) अच्युत ये देवलोक है। इन वर्गों के नाम पर से ही इनमें रहने वाले इन्दों के भी नाम हैं । कल्पातीत देशों के नाम यों हैं मूल: --- कप्पाईया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया 1 गविज्जाणुत्तरा चैव गेविज्जानवविहा तहि ॥ २२॥ I छाया:- कल्पातीतास्तु ये देवाः, द्विविधास्ते व्याख्याताः । ग्रैवेयका अनुत्तराश्चंव, ग्रैवेयका नवविधास्तत्र ||२२|| अन्वयार्थ :- हे इन्द्रमूति ! (जे) जो (कप्पाईयाउ ) कल्पातीत देव है, (ते) ये (दुबिहा) दो प्रकार के (वियाहिया ) कहे गये हैं । (गेविज्ञ ) थेयक (देव) और (अणुत्तरा ) अनुत्तर ( तहि ) उसमें ( विज्ञ) बेयक ( नवविहा) नव प्रकार के है । भावार्थ: है गौतम ! कल्पातीत देव दो प्रकार के हैं। एक तो वैयक और दूसरे अणुत्तर वैमानिक उनमें भी ग्रंवेयक नो प्रकार के और अणुत्तर पांच प्रकार के हैं ।
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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