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________________ २१४ निग्य-प्रवचन छाया:-चन्द्राः सूर्याश्च नक्षत्राणि, ग्रहास्तारामणास्तथा । स्थिरा विचारिणश्चैव, पंचधा ज्योतिरालया: ॥१८॥ अन्यमार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (जोइसालया) ज्योतिषी देव (पंचहा) पाच प्रकार के हैं । (चन्द्रा) चन्द्र (दूर गई (य) और कसा शाह र (तहा) तथा (तागगणा) तारागण । जो (ठिया) ढाईद्वीप के बाहर स्थिर हैं । (वेद) और ढाईद्वीप के भीतर (विचारिणो) चलते फिरते हैं । ___भावार्थ:-हे गौतम ! ज्योतिषी देव पाच प्रकार के हैं--(१) चन्द्र (२) सूर्य (३) मह (४) नक्षत्र और (५) तारागण । ये देव ढाईद्वीप के बाहर तो स्थिर रहने वाले है और उसके मोतर चलते फिरते हैं। वैमानिक देवों के भेद यों हैं .... मूलः--वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया। कम्पोवगा य बोद्धव्वा, कप्पाईया तहेव य ॥१६॥ छाया:-वैमानिकास्तु ये देवाः, द्विविधास्ते व्याख्याताः । वाल्पोपगाश्च बोद्धव्याः, कल्पातीतास्तथैव च ॥१६॥ अन्वयार्थः- हे इन्द्रभूति ! (ज) जो (देवा) देव (वेमाणिया उ) वैमानिक हैं । (ते) वे (दुविहा) दो प्रकार के (विवाहिया) कहे गये हैं। एक तो (कप्पोवगा) कल्पोत्पन्न (अ) और (तहेव य) वैसे ही (कप्पाईया) कल्पातीत (बोषवा) जानना । भावार्थ:-हे गौतम ! वैमानिक देव दो प्रकार के हैं। एक तो कल्पोत्पल और दूसरे कल्पातीत । कल्पोत्पन्न से ऊपर के दंव कल्पातीत कहलाते हैं। और जो कल्पोत्पन्न है वे बारह प्रकार के हैं । वे यों हैंमूल:--कप्पोवगा बारसहा, सोहम्मीसणगा तहा । सणंकुमारमाहिन्दा, बम्भलोगा य लंतगा ॥२०॥ महासुरका सहस्सारा, आणया पाणया तहा । आरणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोक्गा सुरा ॥२१॥
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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