SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नरक-स्वर्ग-निरूपण २१३ अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (असुरा) असुर कुमार (नागसुवाणा) नाग फुमार, सुवर्ण कुमार (विज्जू) विद्यु त कुमार (अग्गी) अग्निकुमार (दोवोदहि) द्वीपकुमार उदधि कुमार (दिसा) दिक्कुमार (वाया) वायुकुमार सथा (यणिया) स्तनित कुमार । इस प्रकार (मवणबासिणो) मवनवासी देव (वियाहिया) कहे गये है। ___ भावार्थ:-हे गौतम ! असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, पवनकुमार और स्तनितकुमार यों ज्ञानियों द्वारा दश प्रकार के भवनपति देव कहे गये हैं। अब आगे आठ प्रकार के वाणज्यतर देव यों है । मूल:-पिसाय भूय जवखा य, रक्खसा किन्नरा किपुरिसा । महोरगा य गंधवा, ___ अविहा बाणमन्तरा ।।१७।। छायाः-पिशाचा भूता यक्षाश्च, राक्षसाः किन्नरा: किंपुरुषाः । महोरगाश्च गन्धर्वाः, अष्टविधा व्यन्त राः ।।१७।। अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति । (वाणमंतरा) वाणव्यन्तर देव (अट्टविहा) आठ प्रकार के होते हैं। जैसे (पिसाय) पिशाच (मूय) भूत (अक्खा) यक्ष (य) और (रक्खसा) राक्षस (य) और (किन्नरा) किन्नर (किंयुरिसा) किंपुरुष (महोरगा) महोरग (म) और (गंधव्या) गंधर्व । ___ भावार्थ:-हे गौतम ! बाणव्यन्तर देव आठ प्रकार के हैं। जैसे (१) पिशाच (२) मूत (३) यक्ष (४) राक्षस (५) किन्नर (६) किंपुरुष (७) महोरग और (८) गंधवं । ज्योतिषी देवों के पास भेद यों हैंमूल:-चन्दा सूरा य नक्खत्ता, गहा तारामणा तहा । ठिया विचारिणो चेब, पंचहा जोइसालया ॥१८॥ मटा
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy