SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ સ્ निर्यण्य-प्रवचन प्रभा जिसकी उसको रत्नप्रभा नाम से पहला नरक कहा है । ( २ ) इसी तरह पापाण, धूल, कर्दम, धूम्र के समान है प्रभा जिसकी उसको यथाक्रम शर्करा प्रभा ( ३ ) चालुका प्रभा ( ४ ) पंक प्रभा और (५) धूम प्रभा कहते हैं । और जहाँ अन्धकार है उसको (६) तम प्रभा कहते हैं। और जहाँ विशेष अन्धकार है उसको ( ७ ) तमतमा प्रभा सातब नरक कहते हैं । मूलः -- जे केइ बाला इह जीवियट्ठी, पाबाई कम्माई करंति रुद्दा तमिसंधयारे, ते घोररूवे तिब्बाभितावे नरए छाया:- ये केजी वाला ह नि पडति ॥ ३॥ पापानि कर्माणि कुर्वन्ति रुद्रा: 1 ते घोररूपे तमिस्रान्धकारे, तीव्राभितापे नरके पतन्ति ॥३॥ अन्वयार्थः - हे इन्द्रभूति (इ) इस संसार में (ज) जो (केड) कितनेक (जीवियट्ठी) पापमय जीवन के अर्थी (बाला) अज्ञानी लोग ( रुद्दा) रौद्र ( पावा) पाप (कम्माई ) कर्मों को (करंति करते हैं। (ते) व (घोरवे ) अत्यन्त भयानक मोर (तमिसंधयारे ) अत्यन्त अन्धकार युक्त, एवं (तिब्बाभि(पति) जा गिरते है । लावे) तीव्र है ताप जिसमें ऐसे (नरए) नरक भावार्थ:- हे गौतम! इस संसार में फिलनेक ऐसे जीव हैं, कि वे अपने पापमय जीवन के लिए महान हिंसा आदि पाप कर्म करते हैं । इसीलिए के महान् मयानक और अत्यन्त अन्धकार मुक्त तीव्र सम्तोषदायक नरक में जा गिरते हैं और वर्षो तक अनेक प्रकार के कष्टों को सहन करते रहते हैं । मूल:- तिब्वं तसे पाणिणो थावरे या, जे हिंसती आयसुहं पडुच्च । जे लूसए होइ अदत्तहारी, ण सिक्खती सेयवियस किंचि ॥४॥
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy