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आवश्यक-कृत्य
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भावार्थ:--है गौतम ! जो सब प्रपंच छोड़ करके साधु तो हो गया है मगर फिर भी वह स्त्री पुरुषों के हाथ व पैरों की रेखाएँ एवं तिल, मस आदि के मले-बुरे फल बताता है, या स्वप्न के शुभाशुभ फलादेश को जो कहना है, एवं पुलोममि आदि के मापन ताता है. इसी तरह मन्त्र-मन्त्रादि विद्या रूप आश्रव के वारा जीवन का निर्वाह करता है तो उसके अन्त समय में, जब वे कर्म फलस्वरूप में आकर खड़े होंगे उस समय उसके कोई भी शरण नहीं होंगे, अति उस समय उसे दूख से कोई भी नहीं बचा सकेगा। मूलः--पडंति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो।
दिव्वं च गई गच्छंति, चरित्ता धम्ममारियं ।।१२।। छायाः-पतन्ति नरके घौरे, ये नराः पापकारिणः ।
दिव्यां च गति गच्छन्ति चरित्वा धर्ममार्यम् ॥१२॥ अन्वयार्थ:--हे इन्द्रभूति ! (जो) जो (नरा) मनुष्य (पावकारिणो) पाप करने वाले हैं वे (घोरे) महा भयंकर (नरए) नरक में (पडति) जा कर गिरते हैं । (च) और (आरिय) सदाचार रूप प्रधान (धम्म) धर्म को जो (चरित्ता) अंगीकार करते हैं, वे मनुष्य (दिवं) श्रेष्ठ (गई) गति को (गच्छति) जाते हैं । ___ भावार्थ:-हे आर्य ! जो आत्माएँ मानव जन्म को पा करके हिंसा, झूठ, चोरी, आदि दुष्कृत्य करती हैं वे पापात्माएं, महा मयंकर जहाँ दुख हैं ऐसे नरक में जा गिरेंगी । और जिन आत्माओं ने अहिंसा, सत्य, दत्त, ब्रह्मचर्य आदि धर्म को अपने जीवन में खूब संग्रह कर लिया है, वे आत्माएं यहाँ से मरने के पीछे जहाँ स्वर्गीय सुख अधिकता से होते हैं, ऐसे श्रेष्ठ स्वर्ग में जाती हैं । मूल:--बहुआगमविण्णाणा,
समाहिउप्पायगा य गुणगाही । एएण कारणेणं,
अरिहा आलोयणं सोउं ॥१३॥ छाया:-बह्वागमविज्ञानाः, समाध्युत्पादकाश्च गुणग्राहिणः।
एतेन कारणेन, अर्हा आलोचनां श्रोतुम् ॥१३॥