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निधन्य-प्रवचन
अग्णयार्थ दे इष्ट मृति 1 (अष) अना हि याक (टोहिं! म्मान कारणों से (सिक्खासील) शिक्षा प्राप्त करने वाला होता है (ति) ऐसा (बुच्चइ) कहा है । (अहस्सिरे) हंसोड़ न हो (सया) हमेशा (दंते) इन्द्रियों को दमन करने वाला हो, (य) और (मम्म) मर्म भाषा (न) नहीं (उदाहरे) बोलता हो, (असीने) सर्वथा शील-रहित (न) नहीं हो, (ड) और (विसील) शील दूपित करने वाला (न) न हो (अइलोलुप) अति लोलुपी (न) न (सिमा) हो, (अक्कोहण) क्रोध न करने वाला हो (सच्चरए) सत्य में रत रहता हो, वह (सिक्यासीले) ज्ञान प्राप्त करने वाला होता है (त्ति) ऐसा (वुच्चइ) कहा है।
भावार्थ:-हे गौतम ! अगर किसी को ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा हो तो, यह विशेष न हंसे, सदैव खेल नाटक वगैरह देखने आदि के विषयों से इन्द्रियों का दमन करता रहे, किसी की माणिक बात को प्रकट न करे, भीलवान रहे, अपना आचार-विचार शुद्ध रक्खे, अति लोलुपता से सदा दूर रहे, क्रोध न करे, और सत्य का सदैव अनुयायी बना रहे, इस प्रकार रहने से ज्ञान की विशेष प्राप्ति होती है। मला जे लकवणं मूविणं पउंजमारणे,
निमित्तकोऊहलसंपगाढे। कुहेडविज्जासवदारजीवी,
न गच्छइ सरणं तम्मि काले ॥११।। छाया:--यो लक्षणं स्वप्नं प्रयुजानः, निमित्तकौतुहल संप्रगाढः ।
कुहेटकविद्यालवद्वारजीवी, न गच्छति शरणं तस्मिन् काले ।।११।। अन्वयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (जे) जो साधु हो कर (लक्खण) स्त्री, पुरुष के हाथादि की रेखाओं के लक्षण और (सुविणं) स्वप्न का फलादेश बताने का (पउंजमाणे) प्रयोग करते हों एवं (निमित्तकोकहलसंपगा) मावी फल बताने तया कौतूहल करने में, या पुत्रोत्पत्ति के साधन बताने में आसक्त हो रहा हो, इसी तरह (कुहेबबिज्जासवदारजीवी) मंत्र, तन्त्र, विद्या रूप आसव के द्वारा जीवन निर्वाह करता हो वह (सम्मि काले) कोदय काल में (सरणं) दुख से बचने के लिए किसी की शरण (न) नहीं (गई) पाता है।