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________________ १४६ निष-प्रवचन मुल:-किण्हा नीला काऊ तिपिण वि, एयाओ अहमलेस्साओ । एयाहिं तिहिं वि जीवो, दुग्गइं उववज्जई ।।१४।। छाया:-कृष्णा नीला कापोता, तिस्रोऽप्येता अधर्मलेश्याः । एताभिस्तिसृभिरपि जीवः, दुर्गतिमुपपद्यते ।।१४।। अम्बयार्थ:-हे इन्द्रभूति ! (किण्हा) कृष्ण (नीला) नील (काऊ) कापोत (एमाओ) ये (तिण्णि) तीनों (वि) ही (अहमलेसाओ) अधर्म लेल्याएं हैं। (एयाहिं) इन (तिहि) तीनों (वि) ही लेश्याओं से (जीवो) जीव (दुग्गइ) दुर्गति को (उवबज्जई) प्राप्त करता है। भावार्थ:-हे गौतम ! कृष्ण, नील और कापोत, इन तीनों को ज्ञानी जनों ने अबम लेश्याएं (अधर्म भावनाएं) कहा है। इस प्रकार की अधर्म मायनामों से जीव दुर्गति में जाकर महान् कष्टों को मोगता है। अत: ऐसी बुरी भावनाओं को कभी भी हृदयंगम न होने देना, यही श्रेष्ठ मार्ग है । मल:----तेऊ पम्हा सुक्का, तिणि वि एयाओ धम्मलेसाओ । एयाहि तिहिं वि जीवो, __ सुग्गई उववज्जई ॥१५॥ छाया:-तेजसी पद्मा शुक्ला, तिस्रोग्येता धर्मलेश्याः । एताभिस्तिसृभिरपि जीवः, सुगतिमुपपद्यते ॥१५॥ अन्वयाः - हे इन्द्रभूति ! (तेक) तेजो (पाहा) पन और (सुक्का) शुक्ल (एयाओ) ये (तिण्णि) तीनों (वि) ही (धम्म लेसाओ) धर्म लेश्याएँ हैं । (एयाहि) इन (तिह) तीनों (वि) ही लेश्याओं से (जीवो) जीव (सगई) सुगति को (उववजई) प्राप्त करता है।
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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