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________________ १३४ निम्रन्थ-प्रवचन मूल:--पडिणीयं च बुद्धाणं, वाया अदुव कम्मुणा । आवी वा जइ वा रहस्से, व कुज्जा कयाई वि ॥१४॥ छाया:-प्रत्यनीक च बुद्धानां, वाचाऽथवा कर्मणा। आविर्वा यदि वा रहसि, नैव कुर्यात् कदापि च ।।१४|| मन्त्रयाः-हे हन्द्रभूति ! (बुद्धाण) तत्त्वज्ञ (थ) और सभी साधारण मनुष्यों से (परिणीय) शत्रुता (वाया) वचन द्वारा और (अदुव) अथवा (कम्मुणा) काया द्वारा (आवीया! मनुष्यों के देखते कपट रूप में (जइ वा) अथवा (रहस्से) एकान्त में (कयाइ वि) कमी भी (णब) नहीं (कुज्जा) करना चाहिए। भावार्थ:-हे गौतम ! क्या तो तत्त्वज्ञ और क्या साधारण सभी मनुष्यों के साथ कटुवचनों से तथा शरीर द्वारा प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में कमी भी शत्रुता करना बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती। मूल:-जणवयसम्मयठवणा, नामे स्वे पडुच्च सच्चे य । बवहारभावजोगे, दसमे ओवम्म सच्चे य ॥१५॥ छायाः-जनपद-सम्यक्त्वस्थापना च, नाम रूपं प्रतीत्य सत्यं च । व्यवहारभावे योगानि दशमोपमिक सत्यं च ॥१५॥ __ अन्वयार्थ:---हे इन्द्रभूति ! (जणवय) अपने अपने देश को (य) और (सम्ममठवणा) एकमत की, स्थापना की (नामे) नाम की (रूवे) रूप की (पडुच्च सच्चे) अपेक्षा से कही हुई (य) और (ववहार) घ्यावहारिक (भाव) भाव ली हुई (जोगे) यौगिक (य) और (दसमे) दशवी (ओवम्म) औपमिक भाषा (सम्ने) सत्य है। भावार्थ:-हे गौतम ! जिस देश में जो भाषा बोली जाती हो, जिसमें अनेकों का एकमत हो, जैसे पंक से और भी वस्तु पैदा होती है, पर कमल दी को पंकज कहते हैं जिसमें एकमत है । नापने के गज और तोलने के बोट
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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