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भाषा-स्वरूप
वगैरह को जितना लम्बा और जितना बजन में लोगों ने मिलकर स्थापन कर रुखा हो। गुपा सहित या गुण शूण्य जिसका जसा नाम हो, वैसा उधारण करने में, जिसका जैसा वेष हो उसके अनुसार कहने में, और अपेक्षा से, जैसे एक की अपेक्षा से पुत्र और दूसरे की अपेक्षा से पिता उच्चारण करने में जो भाषा का प्रयोग होता है, वह सस्य भाषा है। और ईधन के जसने पर मी चूल्हा जल रहा है, ऐसा व्यावहारिक उच्चारण एवं सोते में पांचों वर्णो के होते हए भी "हरा" ऐसा मावमय वचन और अमुक सेठ क्रोड़पति है फिर भले दो चार हजार अधिक हों या कम हों उसको कोड़पति कहने में। एवं दशवीं उपमा में जिन वाक्यों का उच्चारण होता है, वह सत्य माषा है। यों दस प्रकार की भाषाओं को ज्ञानी जनों ने सत्म माषा कहा है। मूल:-कोहे माणे माया, लोभे पेज्ज तहेव दोसे य ।
हासे भए अक्खाइय, उवघाए निस्सिया दसमा ।।१६।। छाया:---कोधं मानं माया, लोभं रागं तथैव द्वेषञ्च ।
हास्यं भयं आख्यातिक: उपघातो नि:श्रितो दशमाः ।।१६।। अन्वयार्थ:-हे इन्नभूति ! (कोहे) क्रोध (माणे) मान (माया) कफ्ट (लोभे) लोम (पेज) राग (लहेव) वैसे ही (दोसे) द्वेष (य) और (हासे) हसी (य) और (मए) भय और (अवस्याइय) कल्पित व्याख्या (दसमा) दशवी (अवधाए) उपधात के (निस्सिया) आश्रित कही हुई भाषा असत्य है।
भावार्थ:-हे गौतम ! क्रोध, मान, माया, लोम, राग, द्वेष, हास्य और भय से बोली जाने वाली भाषा तथा काल्पनिक व्याख्या और दशवी अपघात (हिंसा) के आश्रित जिस भाषा का प्रयोग किया गया हो, यह असत्य भाषा है । इस प्रकार की भाषा बोलने से आत्मा की अधोगति होती है। मूलः--इणमन्न तु अनाणं इहमेगेसिमाहियं ।
देवउत्त अयं लोए, बंभउत्त ति आवरे ॥१७॥ ईसरेण कडे लोए, पहाणाइ तहावरे । जीवाजीवसमाउत्त, सुहदुक्खसमनिए ||१८||