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________________ प्रमाव-परिहार मृल:--बोच्छिद सिरोहमप्पणो, ___ कुमुयं सारइयं वा पाणियं । से सम्बसिरोह वज्जिए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२३॥ छाया:-व्युच्छिन्धि स्नेहमात्मनः, कुमुदं शारदमिव पानीयम् । ___ तत् सर्वस्नेहजितः, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ॥२३॥ अन्वयार्थ:-(गोयम !) हे गौतम ! (सारइये) शरद ऋतु के (कुमुर्य) कुमुद (पाणियं) पानी को (वा) जैसे त्याग देते हैं। ऐसे ही (अप्पणो) तू अपने (सिणेह) स्नेह को (बोच्छिद) दूर फर (से) इसलिये (सम्वसिणेहजिमए) सर्व प्रकार के स्नेह को त्यागता हुआ (समय) समय मात्र का मी (मा पमायए) प्रमाद मत फर। भावार्थ:-हे गौतम ! शारद ऋतु का चन्द्र विकासी कमल जैसे पानी को अपने से पृथक् कर देता है । उसी तरह तू अपने मोह को दूर करने में समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।। मृलः--चिच्चाण धणं च भारियं, पब्वइओ हि सि अणगारियं । मा वंतं पुणो वि आबिए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥२४॥ छाया:-त्यक्त्वा धनं च भार्या, प्रजितो ह्यस्य नगारताम् । मा वान्तं पुनरप्यापिवेः, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ॥२४॥ अन्वया:- (गोयम !) हे गौतम ! (हिं) यदि तूने (घणं) धन (च) और (मारिय) मार्या को (चिच्चाण) छोड़कर (अणगांरिय) साघुपन को (पन्याइओ सि) प्राप्त कर लिया है। अतः (वंत) वमन किये हुए को (पुणो वि) फिर मी (मा) मत (आविए) पी, प्रत्युत त्याग वृत्ति को निश्चल रखने में (समय) समय मात्र का मी (मा पमायए) प्रमाद मत कर ।
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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