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________________ १२० निर्ग्रन्य-प्रवचन शक्ति अथवा "सबब ले" कान, नाक, आँख, जिल्हा आदि की शक्ति (हाई) हीन होती जा रही है। अतः ( समयं ) समय मात्र का मी ( मा पमायए) प्रमाद मत कर । भावार्थ :- हे गौतम! आये दिन तेरी वृद्धावस्था निकट आती जा रही है । बाल सफेद होते जा रहे हैं। और कान, नाक, आंख, जीभ, शरीर, हाथ, पैर आदि की शक्ति मी पहले की अपेक्षा न्यून होती जा रही है। अतः हे गौतम ! समय को अमूल्य समझ कर धर्म का पालन करने में क्षण भर का भी प्रमाद मत कर | i मूलः - अरई गंड विसूइया, आयंका विविहा फुसंति ते । विहडइ विद्वंसह ते सरीरयं, समयं गोयम ! मा पमायए ||२२|| छाया:- अरतिर्गण्डं विसूचिका, आतंका विविधा स्पृशन्ति ते । विह्नियते विध्वस्यति ते शरीरकं, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ||२२|| अन्वयार्थ : --- ( गोयम !) हे गौतम! ( अरई) चित्त को उद्वेग (गंड ) गाँठ, गूमड़े ( विसूइया) दस्त, उल्टी और (विविधा) विविध प्रकार के ( आयंका) प्राण घातक रोगों को (ते) तेरे जैसे ये बहुत से मानव शरीर (फुसंति) स्पर्श करते हैं ( ते सरीर) तेरे जैसे ये बहुत मानव से शरीर (विड) बल की हीनता से गिरते जा रहे हैं । और (बिद्धसह) अन्त में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। अतः ( समयं ) समय मात्र का ( मा पमायए) प्रमाद मत कर। भावार्थ:- हे गौतम ! यह मानव शरीर उद्वेग, गाँठ, गूमड़ा, वमन, विरेचन और प्राणघातक रोगों का घर है और अन्त में बलहीन होकर मृत्यु को भी प्राप्त हो जाता है। अत्तः मानव शरीर को ऐसे रोगों का घर समझ कर है गौतम ! मुक्ति को पाने में विलम्ब मत कर |
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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