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________________ -- - -- - - .. निग्रन्थ-प्रवचन छाया:--एवं भवसंसारे, संसरति शुभाशुभैः कर्मभिः । जीवो बहुल प्रमादः, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ॥१५॥ सम्वयार्थः- (गोयम !) हे गौतम ! (एवं) इस प्रकार (भवसंसारे) जन्ममरण रूप संसार में (पमायबहुलो) अति प्रमाद वाला (जीको) जीव (सुहासुहेहि) शुभ-अशुम (कम्मेह) कर्मों के कारण से (संसरइ) भ्रमण करता रहता है । अतः (समय) समय मात्र का भी (मा पमायए) प्रमाद मत कर। भावार्थ:-हे गौतम ! इस प्रकार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आदि एकेन्द्रिय द्वौन्द्रिय, सीन इन्द्रिम, पार इन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय वाली तिपंच योनियों में एवं देव तथा नरक में संख्यात, असंख्यात और अनंत काल तक अपने शुभाशम कर्मों के कारण यह जीव भटकता फिरता है। इसी से कहा गया है कि इस आत्मा को मनुष्य भव मिलना महान् कठिन है। इसलिए मानव-देह-धारी हे गौतम ! अपनी आत्मा को उत्सम अवस्था में पहुंचाने के लिए समय मात्र का मी प्रमाद कमी मत कर। मूलः-लक्ष्ण वि भानुसत्तणं, आरिअत्त पुणरावि दुल्लहं । बहवे दसुआ मिलक्खुमा, समयं गोयम ! मा पमायए ।।१६।। छाया:--लब्ध्वाऽपि मानुषत्वं, आर्यत्वं पुनरपि दुर्लभम् । बहवो दस्यवो म्लेच्छाः , समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।।१६।। अम्बयार्थ:-(गोयम ! ) हे गौतम ! (माणुसत्तणं) मनुष्यस्व (लभूप वि) प्राप्त हो जाने पर भी (पुणरावि) फिर (आरिअत्त) आर्यख का मिलना (बुरुषह) दुसंभ है । क्योंकि (बहवे) बहुतों को यदि मनुष्य भव मिल भी गया तो वे (पसुआ) चोर और (मिलक्षुआ) म्लेच्छ हो गये अतः (समय) समय मात्र का भी (पमायए) प्रमाद मत कर। भावार्थ:-हे गौतम ! यदि इस जीव को मनुष्य जन्म मिल भी गया तो आर्य होने का सौभाग्य प्राप्त होना महान् दुलंम है । क्योंकि बहुत से नाम भाष
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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