________________
प्रमाद-परिहार
के मनुष्य अनार्य क्षेत्रों में रहकर चोरी वगैरह करके अपना जीवन बिताते हैं । ऐसे नाम मात्र के मनुष्यों की कोटि में और म्लेच्छ जाति में जहाँ कि घोर हिंसा के कारण जीव कमी ऊँधा नहीं उठता ऐसी जाति और देषा में जीव ने मनुष्य पेट पर भी ली तो किस काम को ? प्रमसिार आर्य देश में जन्म लेने वाले और कर्मों से आयें है गौतम ! एक पल भर का भी प्रमाद मत कर । मूल:--लद्धण वि आरियत्तणं,
अहीणपंचिदियया हु दुल्लहा । विगलिदियया ह दीसई,
समयं गोयम ! मा पमायए ॥१७॥ छायाः-लब्ध्वाऽप्यार्यत्वं, अहीनपञ्चेन्द्रियता हि दुर्लभा ।
विकलेन्द्रियता हि दृश्यते, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।।१७।। अम्बयार्पः- (गोयम !) हे गौतम ! (आरियत्तणे) आर्यत्व के (लट्टण वि) प्राप्त होने पर भी (ह) पुनः (अहोणपंचिदियया) अहीन पंचेन्द्रियपन मिलना (दुल्लहा) दुर्लभ है (ह) क्योंकि अधिकतर (विलिदियया) विकलेन्द्रिय वाले (दीसई) दीन पड़ते हैं । अतः (समय) समय मात्र का (मा पमायए) प्रमाव मत कर।
भावार्थ:-हे गौतम ! मानव-देह आर्य देश में भी पा गया परन्तु सम्पूर्ण इन्द्रियों की शक्ति सहित मानव देह मिलना महान कठिन है। क्योंकि बहुत से ऐसे मनुष्य देखने में आते हैं कि जिनकी इन्द्रियाँ विकल हैं । जो कानों से वषिर हैं। वो आंखों से अन्धे या पैरों से अपंग हैं। इसलिए सशक्त इन्द्रियों वाले है गौतम ! बौदहा गुणस्थान प्राप्त करने में कमी आलस्य मत कर । मूल:--अहोणपंचिदियत्त पि से ल हे,
उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा । कुतिस्थिनिसेवए जणे,
समयं गोयम ! मा पमायए॥१८॥