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________________ ११२ निर्गन्ध-अपना भावार्थ:-हे गौतम ! यह जीव पृथ्वीकाय' में जन्म-मरण को धारण करता हुआ उत्कृष्ट असंख्य काल अर्थात् असंस्य अवसर्पिणी उत्सपिणी काल तक को बिताता रहता है । अतः हे मानव देह-धारी गौतम ! तुसे एक क्षण मात्र की मी गफलत करमा' ब नहीं है। मूलः--आउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संबसे । कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥६॥ तेउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संबसे । कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए ।।७।। बाउक्कायमइगओ, उक्कोस जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥८॥ छाया:--अपकायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत् । कालं संख्यातीत, समयं गौतम ! मा प्रमादी: ॥६॥ तेजःकायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत् । कालं संख्यातीतं, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ||७11 वायुकायमतिगतः उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत् । काल संख्यातीतं, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।।८।। अन्वयार्थ:-(गोयम !) हे गौतम ! (जीवो) जीव (आउक्कायमइगो) अपकाय को प्राप्त हुआ (उपक्रोस) उत्कृष्ट (संखाईय) असंख्यात (काल) काल तक (संबसे) रहता है । अतः (समय) समय मात्र का (मा पमायए) प्रमा मत कर ।।६।। इसी सरह (तेउकायमहगओ) अग्निकाय को प्राप्त हुआ जीव और (वाउनकायमइगमओ) वायुकाय को प्राप्त हुआ जीव असंख्य काल तक रह जाता है |७-८॥ ___ भावार्थ:-हे गौतम | इसी तरह यह आत्मा जल, अग्नि तथा वायु काथ में असंख्य काल तक जन्म-मरण को धारण करता रहता है। इसीलिए तो कह | Body of the living beiogs of the carth.
SR No.090301
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size4 MB
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