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प्रमाद- परिहार
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जाता है कि मानव जन्म मिलन महान कठिन है। नराश्य हे गौतम | तुझे धर्म का पालन करने में तनिक भी गाफिल न रहना चाहिए।
मूलः -- वणस्सइकायमइगओ, उनकोसं जीवो उ सबसे । कालमणतं दुरंतयं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥६॥
छाया: - वनस्पत्तिकायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत् 1 कालमनन्तं दुरन्तं समयं गौतम ! मा प्रमादीः ॥६॥
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अन्वयार्थ:- ( गोयम !) हे गौतम! ( गणस्सइकायम गओ ) वनस्पतिकाय में गया हुआ (जीवो) जीव (उक्को) उत्कृष्ट ( दुरंतयं) कठिनाई से अन्त आवे ऐसा (अनंत) अनंत (काल) काल तक (सबसे) रहता है। अतः (समय) समय मात्र का भी (मा पमायए) प्रमाद मत कर ।
भावार्थ:- हे गौतम ! यह आत्मा वनस्पतिकाय में अपने कृत-कर्मों द्वारा जन्म-मरण करता है, तो उत्कृष्ट अनंत काल तक उसी में गोता लगाया करता है। और इसी से उस आत्मा को मानव शरीर मिलना कठिन हो जाता है । इसलिए है गौतम ! पल भर के लिए भी प्रमाद मत कर
सुलः - - बे इंदिअकायम गओ,
उक्कोसं जीवो उ सबसे । कालं संखिज्जसण्णिअं,
समयं गोयम ! मा पमायए ॥ १०॥
छाया: - द्वीन्द्रियकायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत् । कालं संख्येयसंज्ञितं समयं गौतम ! मा प्रमादीः ||१०||
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अन्वयार्थः - ( गोयम !) हे गौतम! ( बेइंदिकायम इगओ) द्वीन्द्रिय योनि को प्राप्त हुआ (जीवो) जीव ( जक्कोर्स) उत्कृष्ट ( संखिज्जसं णि) संख्या कौ संज्ञा है जहां तक ऐसे (काल) काल तक (संवसे) रहता है। अतः ( समयं ) समय मात्र का भी ( मा पसायए) प्रमाद मत कर ।