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निमित्तशास्त्रम्
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घट-बढ़ के सूचक है। रविपुष्यामृत योग में पीतवर्णीय उल्का का पतन सोने के भाव को पहले तीन माह तक गिरना और उसके बाद बढ़ने की सूचना देता है।
श्यामवर्ण की उल्का का पतन रविवार की रात्रि के पूर्वार्ध में दिखें तो काले रंग की वस्तुओं के भाव बढ़ेंगे। पीतवर्ण की उल्का का पतन रविंदर की पत्रि के पूर्वार्ध में बिले तो गेहूँ और के व्यापार में अधिक घटा-बढ़ी होगी ।
श्वेतवर्ण की उल्का का पतन रविवार की रात्रि के पूर्वार्ध में दिखे तो चाँदी के भाव में बहुत गिरावट होगी। रक्तवर्ण की उल्का का पतन रविवार की रात्रि के पूर्वार्ध में दिखे तो सोने के भाव में बहुत गिरावट होगी। यदि कोई व्यापारी रविवार, मंगलवार और शनिवार के दिन पूर्वदिशा में गिरती हुई उल्का देखें तो उसे माल बेचने से बड़ा भारी लाभ हो सकता है।
इन्हीं रात्रियों में यदि पश्चिमदिशा में उल्कापतन दिख जाये तो उन्हें माल खरीदना चाहिये । दक्षिण से उत्तर की ओर गमन करने वाली उल्का देखने से मोती, हीरा, पन्ना आदि में अपार लाभ होता है । इन रत्नों के मूल्य में आठ माह तक घट-बढ़ होती रहेगी।
स्निग्ध, श्वेत प्रकाशमान और सीधे आकार का उल्का का
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पतन शान्ति, सुख और निरोगता को सूचित करती है ।
प्रायः सभी प्रकार की उल्काओं के पतन को सन्ध्याकाल में देखने पर चतुर्थांश फल प्राप्त होता है। उल्कापतन की रात्रि के प्रथम प्रहर में देखने से उसका षष्ठांश फल प्राप्त होता है। उल्कापतन को रात्रि के दूसरे प्रहर में देखने से उसका तृतीयांश फल प्राप्त होता है। ठीक मध्यरात्रि में अर्थात् रात्रि के बारह बजे उल्का का पतन देखने पर उसका फल आधा मिलता है।
रात्रि में बारह से एक बजे के मध्य में उल्का का पतन देखने पर फलप्राप्ति पूर्णरूप से होती है। रात्रि को एक बजे उल्का का पतन देखने पर उसका अर्धाधिक फल प्राप्त होता है। उल्कापतन की रात्रि के अन्तिम प्रहर में देखने से उसका फल न्यूनरूप में प्राप्त होता है।
अनिष्टकारी उल्का का पतन देखने पर अनिष्ट की शान्ति के लिए चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की पूजन करनी चाहिये ।