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-निमिनशास्त्रम - चित्तलयं तिल्लाणवाहिमारिच ताण को वेइ।
सामासम्मिपङती सोहणउक्काणवेराइ॥१२०॥ अर्थ :
पंचरंगी उल्का मारी की बीमारी करती है और जो उल्का इधर उधर से टकरा जाये, वह प्राणनाश करती है। o मज्झणिएसंज्झाए वायम्गिभयंणिवेइपडती। म अहअण्णवेलदिट्टा उक्का रणस्सणासयरा।।१२१॥ अर्थ :
सन्ध्या व अर्धरात्रि की उल्का हवा व अग्नि का भय करती है। तथा सूर्योदय की प्रथम उल्का राजा का नाश करती है।
पडमाणी णिहिटाधुव सुवण्णस्सणासिणीउक्का।
अंगारायणजुत्ताअग्गीदाईणिवेदेई॥१२सा अर्थ :
जो उल्का गिरती हुई दिखाई देवे तो वह सुवर्ण का नाश करती है तथा यदि वह अंगारे लिये हुए गिरे तो वह अग्निदाह करती है।
अह सुक्केणय जुत्ताजम्हाजइपडइ कहव पलजंती।
तोरणमंडविणासंकच्छुकंडुच्च साणिवेएई॥१२३॥ अर्थ :
यदि शुक्र के उदय में जलती हुई उल्का दिखाई देवे तो वह रस के बर्तनों को नष्ट करती है और खुजली के रोग को उत्पन्न करती है।
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___राहूण विसयघादंजलणासय रहिवेउक्का॥१२४॥
अर्थ :