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नमित्तशास्त्रम
करते हुए बहुत दुःख को प्राप्त होते हैं।
भूतों की मूर्ति में उत्पात दिखाई पड़े तो दास-दासियों को सदा पीड़ा होती है। इस उत्पात को देखने वाला व्यक्ति भी एक महीने तक अधिक पीड़ा को प्राप्त होता है। . चन्द्रमा, वरुण, शिव और पार्वती की प्रतिमाओं में उत्पात हो तो इराजा की पहरानी को मरण का भय होता है । सुलसा की मूर्ति में उत्पात है दिखाई पड़ने पर सपेरों को कष्ट पहुँचता है । भद्रकाली की प्रतिमा में,
उत्पात परिलक्षित होने पर व्रती स्त्रियों को पीड़ा होती है। कामदेव की स्त्री की प्रतिमा अर्थात् रति की प्रतिमा अथवा किसी भी स्त्री की प्रतिमा में किसीप्रकार का उत्पात दिखाई पड़ने पर नगर की प्रधान स्त्रियों में भय का संचार होता है। लक्ष्मी के मूर्ति की विकृति वैश्यवर्णीय स्त्रियों के लिए भयकारक मानी गयी है।
जहाँ देवों द्वारा जात्तना, बोलना, हँसना, कीलना और पलक झपकना आदि क्रियायें की ताजी हैं, वहाँ अत्यन्त भय होता है।
स्थिर प्रतिमा अपने आप अपने स्थान से हटकर दूसरे स्थानपर जावे अथवा चलती हुई बात हो तो तीसरे महीने में उस नगरवासियों के समक्ष अचानक विपत्ति आती है । उस नगर या प्रदेश के प्रमुख अधिकारी को मत्यतल्य कष्ट भोगना पड़ता है। जनसाधारण को भी आधि-व्याधिक आदि से उत्पन्न कष्ट उठाने पड़ते हैं।
प्रतिमा सिंहासन से नीचे उतर आये अथवा सिंहासन से नीचे गिर र जाये तो उस प्रदेश के मुखिया की मृत्यु हो जाती है । उस प्रदेश में अकाल, महामारी फेलती है और वर्षा का अभाव रहता है। है यदि उपर्युक्त उत्पात लगातार सात दिन अथवा पन्द्रह दिनों तक होते रहे तो निश्चयरूप से प्रतिपादित फल की प्राप्ति होती है परन्तु एक या दो दिन उत्पात होकर शान्त हो जावे तो पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती है।
किसी भी देवता की प्रतिमा जीभ निकालकर कई दिनों तक रोती हुई दिखाई पड़े तो उस नगर में अत्यन्त उपद्रव होता है। प्रशासक
और प्रशास्यों में वैमनस्य हो जाता है। धन-धान्य की क्षति होती है । चोर और डाकुओं का उपद्रव अधिक बढ़ जाता है। संग्राम, मारकाट और